Book Title: Jinvijayji ka Vyaktitva aur Kartutva
Author(s): Ravishankar Bhatt
Publisher: Sarvoday Sadhnashram Chittorgadh

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Page 4
________________ नीचे बैठ प्राप्त नहीं किया, वरन् अनेक खण्डहरों, झारखण्डों, शिलालेखों को पढ़ते हुये सरस्वती की अनवरत साधना करते हुये पाली, डिंगल, प्राकृत, संस्कृत, मागधी अपभ्रंश आदि भाषाओं का तलस्पर्शी ज्ञान प्राप्त किया, जर्मनी जाकर जर्मन अंग्रेजी आदि योरोपीय भाषायें सीखी। यहीं से भाषाविद अनेक भाषाओं के ज्ञाता हो गये। जिन विजयजी का व्यक्तित्व संकोचशील मानवीय संवेदना से ओत-प्रोत है । बाहर से अन्य मनस्क से दिखाई देने वाले व्यक्ति के अंदर कितना कोमल, उदार मानस है यह पास बैठकर ही कोई जान सकता है, महसूस कर सकता है । आचार्य जी राजस्थान की वीर प्रसूता धरती के भीलवाड़ा जिले के बड़ी रूपाहेली नामक गांव में सन् १८८८ की २७ जनवरी को पैदा हुये । इस गांव से केवल जन्म का संबंध है, क्यों कि रूपाहेली के बहुत कम लोग इनको जानते हैं और इनके महान कार्य को तो शायद ही कोई जानता हो ! क्योंकि मुनिजी १२-१३ वर्ष की आयु में गुरु देवी हँस जी के साथ निकल गये और फिर देश विदेश के चक्कर काटते, भ्रमण करते रहे। __आज ८४ वर्ष की अवस्था में अपनी जन्म भूमि से ८२ किलोमीटर दूर चन्देरिया गांव में अपनी सर्वोदय झोपड़ी डालकर उस ओर अपनी मन्द दृष्टि से निहार रहे हैं जहां से जीवन की अभूतपूर्व जीवन यात्रा प्रारंभ की थी। मुनि जी वीर वसुन्धरा चित्तौड़गढ़ के निकट ग्रामीण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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