Book Title: Jinendra Archana Author(s): Akhil Bansal Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 5
________________ पं. भूधरदासजी सौभाग्यमलजी सौभाग्यमलजी सौभाग्यमलजी सौभाग्यमलजी पं. अभयकुमारजी पं. भूधरदासजी पं. भूधरदासजी पं. भूधरदासजी mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm Mmmmmmmmmmm पं. दौलतरामजी पंकजजी पं. भूधरदासजी पं. भागचन्दजी पं. भागचन्दजी १०५. वे मुनिवर कब मिलि हैं... १०६. ऐसे मुनिवर देखे वन में... १०७. परम दिगम्बर मुनिवर... १०८. संत साधु बन के विचरूँ.. १०९. धन्य मुनीश्वर आतम हित में... ११०. म्हारा परम दिगम्बर मुनिवर आया... १११. मैं परम दिगम्बर साधु के... ११२. नित उठ ध्याऊँ, गुण गाऊँ... ११३. हे परम दिगम्बर यति महागुण... ११४. है परम दिगम्बर मुद्रा जिनकी... ११५. होली खेलें मुनिराज शिखर वन में... ११६. ते गुरु मेरे मन बसो... ११७. अहो जगत गुरुदेव... विविध ११८. निरखत जिन चन्द्र-वदन... ११९. आज हम जिनराज. १२०. सुनि ठगनी माया. १२१. श्री मुनि राजत समता संग... १२२. अब प्रभु चरण छोड़ कित जाऊँ... १२३. प्रभु पै यह वरदान सुपाऊँ... १२४. अशरीरी सिद्ध भगवान... १२५. मैं महापुण्य उदय से... १२६. करलो जिनवर का गुणगान... १२७. देखो जी आदीश्वर स्वामी... १२८. श्री अरिहन्त छवि लखि... १२९. मैंने तेरे ही भरोसे... १३०. रोम-रोम पुलकित हो जाय... १३१. चाह मुझे है दर्शन की... १३२. जिन प्रतिमा जिनवर-सी कहिए... १३३. चरखा चलता नाही... १३४. श्री जिनवर पद ध्यावे जे नर... १३५. परमेष्ठी वन्दना... १३६. वन्दो अद्भुत चन्द्रवीर जिन... १३७. हे जिन तेरो सुजस उजागर... १३८. थोकी उत्तम क्षमा पै... १३९. दरबार तुम्हारा मनहर है... १४०. नाथ तुम्हारी पूजा में सब... १४१. दया दान पूजा शील... १४२. श्री सिद्धचक्र माहात्म्य... १४३. हमको भी बुलवालो स्वामी सिद्धों... viii जिनपूजन रहस्य पण्डित रतनचन्द भारिल्ल देवपूजा : क्या/क्यों/कैसे? “देवपूजा गुरूपास्ति स्वाध्यायः संयमस्तपः । दानं चेति गृहस्थानां षट्कर्माणि दिने-दिने ।।' देवपूजा, गुरु-उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप और दान - ये छह आवश्यक कार्य गृहस्थों को प्रतिदिन करना चाहिए।" यह पावन आदेश आचार्य पद्मनन्दि का है। इसमें देवपूजा को प्रथम स्थान प्राप्त है। वह देव पूजा क्या है? कितने प्रकार की है? किस देव की की जाती है? क्यों की जाती है? कैसे की जाती है? पूजन का वास्तविक प्रयोजन क्या है? और मोक्षमार्ग में इसका क्या स्थान है? आदि बातें सभी धर्मप्रेमी बन्धुओं को जानने योग्य हैं। पूजन शब्द का अर्थ आज बहुत ही संकुचित हो गया है। पूजन को आज एक क्रिया विशेष से जोड़ दिया गया है; जबकि पूजन में पंच परमेष्ठी की वंदना, नमस्कार, स्तुति, भक्ति तथा जिनवाणी की सेवा व प्रचार-प्रसार करना, जैनधर्म की प्रभावना करना, जिनमन्दिर एवं जिनप्रतिमा का निर्माण करना-कराना आदि अनेक कार्य सम्मिलित हैं। जिनमार्ग में सच्ची श्रद्धा ही वास्तविक जिनपूजन है। भक्ति और पूजा का स्वरूप दर्शाते हुए आचार्य अपराजित लिखते हैं - "का भक्ति पूजा? अर्हदादि गुणानुरागो भक्तिः । पूजा द्विप्रकारा - द्रव्यपूजा भावपूजा चेति । गन्धपुष्पधूपाक्षतादिदानं अर्हदाधुद्दिश्य १. पद्मनन्दि पंचविशति (उपासक संस्कार), पृष्ठ १२८, श्लोक सं. - ७। जिनेन्द्र अर्चना/0001 300 araraar -51066666 :09086033 पं. दौलतरामजी जिनेश्वरदासजी भैया भगवतीदासजी पं. भूधरदासजी पं. भागचन्दजी पं. दौलतरामजी पं. दौलतरामजी वृद्धिचंदजी पं. रतनचन्दजीPage Navigation
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