Book Title: Jinagamo ki Bhasha Nam aur Swarup
Author(s): K R Chandra
Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf

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Page 4
________________ 154... जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क सर्वप्रथम तो यह ज्ञातव्य होना चाहिए कि हमारे मध्यकालीन प्राकृत व्याकरणकारों ने अर्धमागधी के लिए कोई विशिष्ट व्याकरण ही नहीं लिखे जिसके कारण महाराष्ट्री प्राकृत के मध्यवर्ती व्यंजनों के परिवर्तन के जो नियम थे वे ही नियम अर्धमागधी प्राकृत पर भी लागू कर दिये गये। आगमों की हस्तप्रतों (प्राचीन और अर्वाच्चीन) में जहां-जहां पर भी पालि के समान प्रयोग (मध्यवर्ती व्यंजनों में ध्वनिपरिवर्तन नहीं होने के पाठ ) मिलते थे, उन्हें क्षतियुक्त मानकर उनके बदले में महाराष्ट्री की शब्दावली को ही अपनाया जाने लगा। उदाहरण के लिए देखिए प्रो. हर्मन याकोबी के और शुबिंग के आगमों में प्राचीनतम माने जाने वाले आचारांग के प्रथम श्रुत स्कंध के संस्करण के कतिपय पाठ - अध्याय का याकोबी के पाठ शुब्रिग के पाठ पेरा नं. लंडन 1882 ए.डी. लिप्जिग 1910 १.२.३.२ १.४.४.१ १.१.५.७ १.५.५.१ १.२.३.५ १.२.१.३ अकुतोभयं परितावं एते सव्वतो अवहरति वेदेति अकुओभयं परियावं एए सव्वओ अवहरइ वेदेइ (- -) ओमोयरियं धम्मविउ पवाय वेएइ वइस्सामि विडत्ता समायाय १.९.४.१ १.४.३.१ ओमोदरिय धम्मविदु पवाद वेदेति १.२ १.३ १.९.१.१ १.१.६.२ ११६३ वदिस्सामि विदिता समादाय १.७.१.३ असाधू असाहू १.१.५.२ अधं अहं १.९.२.१५ अधोवियडे अहेवियडे अब हम नीचे पिशल के 'प्राकृत भाषाओं का तुलनात्मक व्याकरण' और महावीर जैन विद्यालय, बंबई के संस्करण के पाठ भी दे रहे हैं. पिशल शुबिंग पिशल म.जै. विद्यालय (त) आतुर पभिति नतिय आउरे पभिड़ तइय आउर पभिइ नइय आतुर पभिति नतिय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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