Book Title: Jinabhashita 2005 10
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 19
________________ मेढ़कों ने ली राहत की साँस डॉ. ज्योति जैन एक दिन अपनी एक परिचिता के यहाँ जाना हुआ।। शरीर की संरचना इसतरह से की है कि उसका शरीर बायलॉजी उनकी छोटी-सी पोती अपनी नर्सरी की किताब लिये घूम | के विद्यार्थियों के प्रयोग के लिये सबसे उपयुक्त है। इसी रही थी। बात करने के लिये मैंने उसे बुलाया, नाम आदि | विशेषता के कारण लाखों, करोड़ों मेढ़क प्रयोगशालाओं में पूछा, किताब देखी। उसने अपनी तोतली भाषा में कहा, | शहीद होते आ रहे हैं। यद्यपि बायलॉजी के सभी छात्र 'आंटी! ये देखो एफ, एफ फार एक तो फ्लेग (झंडा) एक | डॉक्टर नहीं बनते, फिर भी प्रयोगशाला में मेढ़कों की चीरफाड़ फिश (मछली) और एक है फ्राग (मेढ़क), लेकिन ये तो | सभी को करनी पड़ती थी। स्कूलों में मेढ़कों का दुरुपयोग मैंने कभी देखा ही नहीं।' हालाकि बरसात के दिन थे, पर | भी बहुत होता था, जितने चाहिए उससे ज्यादा ही बेहोश कर मुझे लगा कि मेढ़क तो अब सचमुच दिखाई ही नहीं देते हैं। | दिये जाते थे। कुछ मेढ़क तो यूँ ही मर-खप जाते थे। कुछ पहले तो बरसात होते ही उनकी टर्र-टर्र की आवाज सुनाई | | शरारती विद्यार्थी इस क्रूरता के खेल में शामिल हो विभिन्न देती थी। लगा कि जीव-जन्तुओं का सन्तुलन तो बिगड़ ही | प्रकार से एक्सपेरिमेंट कर उन्हें मार देते थे और ये खेल रहा है। अब शायद चित्र या मॉडल रूप में ही ये जन्तु | एक्सपेरिमेन्ट प्रयोगशाला के बाहर भी होते थे। कोई मेढ़क दिखाने पड़ जायें। दिख जाये तो उस पर भी करने लगते थे। ऐसे बच्चों में दयाप्रकृति सबकी माँ है और उसकी गोद में रहनेवाले करुणा की भावना तो दूर, जीव-जन्तुओं के प्रति एक क्रूरता समस्त जीव-जन्तुओं का एक-दूसरे से एक प्राकृतिक रिश्ता की भावना जन्म ले रही थी। इस तरह शिक्षा के दौरान है, एक-दूसरे से जुड़ी हुई एक श्रृंखला है, एक चक्र है। ये | होनवाला प्रायोगिक चरिफाड़ में प्रतिवर्ष लाखो-करोड़ो का । हैं। भारतीय समाज में अनादि संख्या में मेढकों का खात्मा हो रहा था। परस्पर काल से जीव-जन्तुओं के संरक्षण की एक समृद्ध परम्परा मेढ़क एक तरह से पर्यावरण संरक्षण का महत्वपूर्ण रही है। पूजा के रूप में गाय, भैंस, बकरी, घोड़ा आदि की। | कार्य करता है। वह किसानों का सदैव साथी रहा है। विषैले प्रकृति से जीव-जन्तु व मानव का सदैव गहरा संबंध रहा | कीड़ों, चूहों आदि के विनाश में सहायक रहे मेढ़कों का जब है। स्वयं ही विनाश होने लगा तो पर्यावरण सन्तुलन बिगड़ने अपनी बदलती जीवन-शैली और वैचारिक-परिवर्तन । | लगा। १९८७ में करीब दो करोड़ मेढ़कों का चीरफाड़ में से हमने प्रकृति और मनुष्य के संबंधों को ही बदल दिया | | उपयोग देश के स्कूलों में किया गया। मेढ़कों की लगभग है। इसीकारण हम पर्यावरण के असंतलन और बढ़ते प्रदषण | २०५ प्रजातियों में से अनेक लुप्त होने की कगार पर आ से घिरते जा रहे हैं। चिडिया, मेढक, केचआ. गिलहरी | गयीं। इसीतरह १९८६ से पहले भारत विश्व में मेढक की आदि निरीह जीव-जन्तु अपना अस्तित्त्व खोते जा रहे हैं। | टांग निर्यात करनेवाला सबसे बड़ा देश था। लेकिन अब इस जिन्हें प्रकृति ने जीने का अधिकार दिया, इंसान उन्हें समाप्त | पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। करने पर तुला हुआ है। जीव-जन्तु हमारी प्राकृतिक धरोहर क्रूरता-निवारक जन्तु अधिनियम १९६० के तहत हैं। इसीभावना को भारत के संविधान के अनुच्छेद ५१ (ए) | स्कूली प्रयोगशालाओं में जन्तुओं की चीरफाड़ को भी क्रूरता में भी दर्शाया गया है। वहाँ कहा गया है कि प्रत्येक भारतीय | के दायरे में रखते हुए इसे प्रतिबंधित किया गया था पर फिर नागरिक का कर्तव्य है कि 'प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके | भी प्रयोग चलते रहे। समय-समय पर जीवदया संबंधी अन्तर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करें और | संगठनों, शाकाहारी संगठनों एवं अनेक स्वयंसेवी संगठनों, उनका संवर्धन करें तथा प्राणीमात्र के प्रति दयाभाव रखें।' | साधुसन्तों (विशेषतः आचार्य श्री विद्यासागरजी, मुनि श्री संविधान में व्यवस्था तो हो गयी, पर पालन कितना हो पा | सुधासागरजी, मुनि श्री क्षमासागरजी, मुनि श्री अभयसागरजी) रहा है यह चिन्ता का विषय है। ने इसके विरोध में स्वर उठाये। तब अनेक प्रदेशों की प्रकृति का एक जीव है मेढक। प्रकृति ने मेढक के | सरकारों ने इन्टरमीडिएट कक्षाओं में मेढ़क के डिसेक्शन -अक्टूबर 2005 जिनभाषित 17 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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