Book Title: Jinabhashita 2005 10
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 23
________________ अतिशय क्षेत्र बीनाजी (बारहा) मध्यप्रदेश के सागर जिले की देवरी तहसील में | एक बहत बडी गौशाला भी है। जहाँ पशुओं की समुचित स्थित बुंदेलखंड की पावन पुनीत वसुंधरा पर सुखचैन नदी । | व्यवस्था के लिए गौशाला अधिकारी तत्पर तैयार रहते हैं। के समीप अपनी अनुपम छटा बिखेरता अतिशय क्षेत्र बीनाजी अतिशय क्षेत्र की स्वयं की ९२ एकड भूमि है, जो खेती में (बारहा) अब सभी के हृदयों में जगह बना चुका है। यह | उपयोगी है। मंदिर परिसर में अशोक आदि के वृक्ष भी छोटा-सा क्षेत्र आपकी बाट निहार रहा है। जहां वर्तमान में सुशोभित होते हैं। पेयजल हेतु नल की व्यवस्था है और आचार्यदेव ५१ पिच्छिकाओं सहित ससंघ विराजमान हैं। यात्रियों के लिए भोजन, विश्राम, प्रसाधन की समुचित बीनाजी (बारहा) देवरी से ८ किलोमीटर की दूरी पर स्थित | व्यवस्था भी क्षेत्र पर है। है। वहाँ पहुँचने के लिए देवरी से समुचित साधन हमेशा बीनाजी (बारहा) में आचार्य महाराज श्री विद्यासागर उपलब्ध रहते हैं। जी का आगमन भी अनेकों बार हआ है। इसी तारतम्य में यह क्षेत्र वैसे तो पिछड़ा हुआ था, लेकिन आचार्य- | इस वर्ष का पावन वर्षायोग भी आचार्य श्री विद्यासागर जी संघ के मंगल आशीर्वाद और यात्रियों के अनवरत पहुँचने से मुनि महाराज का ५१ पिच्छिकाओं सहित अतिशय क्षेत्र यह क्षेत्र प्रगति पर है। क्षेत्र-परिसर में तीन भव्य जिनालय | | बीनाजी में हो रहा है। यह स्थान तप, ध्यान, चिंतन, मनन के हैं, एक मानस्तंभ है और एक चैत्यालय है। गंधकुटी- | लिए अच्छा ही नहीं वरन बहत अच्छा स्थान है। वर्षायोग में जिनालय विश्व का अद्वितीय जिनालय है। जहां ऊपर दर्शन | मंगलकलश स्थापना प्रभातकुमार जी जैन एवं परिवार मुंबई हेतु चारों ओर से सीढ़ियाँ हैं, और बीच में से एक सीढ़ी बनी | द्वारा किया गया है। आचार्यसंघ में जो साध-परमेष्ठी विराजमान हुई है। जिसका जीर्णोद्धार वंशी पहाड़पुर के लाल पत्थरों से | हैं, उनके नाम इस प्रकार हैं : पूर्णत: की ओर है। उसी के समीप गगनचुंबी शिखरवाला १.परमपूज्य आचार्य विद्यासागरजी, २.मुनि श्री १००८ भगवान् शांतिनाथ मूलनायकवाला जिनमंदिर भी लाल समयसागर जी, ३.मुनिश्री योगसागर जी, ४.मुनिश्री निर्णयसागर पत्थर से भव्यता को प्राप्त हो चुका है। यहीं अतिशयकारी जी, ५.मुनिश्री प्रसादसागर जी, ६.मुनिश्री अभयसागर जी, प्रतिमा जी हैं। इसके मंदिर की परिक्रमा में भी आदिनाथ, ७.मुनिश्री प्रशस्तसागर जी, ८.मुनिश्री पुराणसागर जी, ९.मुनिश्री शीतलनाथ आदि भगवानों की प्रतिमा जी विराजमान हैं। [. प्रबोधसागर जी, १०.मुनिश्री प्रणम्यसागर जी, ११.मुनिश्री उसी से लगा हुआ भगवान् मल्लिनाथ और चंदप्रभ भगवान् प्रभातसागर जी, १२.मुनिश्री चंद्रसागर जी, १३.मुनिश्री की विशाल आकार की प्रतिमाओं से आच्छादित मामा भानेज | संभवसागर जी, १४.मनिश्री अभिनंदनसागर जी, १५.मनिश्री के नाम से प्रसिद्ध जिनालय है, जहाँ का जीर्णोद्धार अभी सुमितसागर जी, १६.मुनिश्री पद्मसागर जी, १७.मुनिश्री प्रारंभ होने जा रहा है। जहाँ पर तलगृह में भगवान् अजितनाथ पुष्पदंतसागर जी, १८.मुनिश्री श्रेयांससागर जी, १९.मुनिश्री की अनुपम झांकी के दर्शन होते हैं। इस मंदिर में विराजमान पूज्यसागर जी, २०.मुनिश्री विमलसागर जी, २१.मुनिश्री मल्लिनाथ भगवान् जो की चूना, गुड़ आदि से निर्मित मूर्ति अनंतसागर जी, २२.मुनिश्री धर्मसागर जी, २३.मुनिश्री है, जो प्राचीन समय में महावीर के नाम से प्रसिद्ध थी। शांतिसागर जी, २४.मुनिश्री कुंथुसागर जी, २५.मुनिश्री लेकिन इसके सामने विराजमान चंदप्रभ भगवान् की मूर्ति अरहसागर जी, २६.मुनिश्री मल्लिसागर जी, २७.मुनिश्री को दूसरी वेदी पर स्थापित किया तो इस भव्य प्रतिमाजी में सुब्रतसागर जी, २८.मुनिश्री वीरसागर जी, २९.मुनिश्री क्षीरसागर कलश का चिन्ह देखा गया। तब से सभी मल्लिनाथ भगवान् | जी, ३०.मुनिश्री धीरसागर जी, ३१.मुनिश्री उपसमसागर जी, की मूर्ति जानते हैं। सामने नगाड़ खाना है, जिसमें पार्श्वनाथ | ३२.मुनिश्री प्रसमसागर जी, ३३.मुनिश्री आगमसागर जी, जी की प्रतिमा जी विराजमान है। ३४.मुनिश्री महासागर जी, ३५.मुनिश्री विराटसागर जी, इस मंदिरजी के सामने मानस्तंभ भी अपनी आभा ३६.मुनिश्री विशालसागर जी, ३७.मुनिश्री शैलसागर जी, बिखेर रहा है। जिसके माध्यम से दूर-दूर तक भगवान् के ३८.मुनिश्री अचलसागर जी, ३९.मुनिश्री पुनीतसागर जी, दर्शन हो जाते हैं। परिसर में एक कुंआ, विशाल धर्मशाला, | ४०.मुनिश्री अविचलसागर जी, ४१.मुनिश्री विशदसागर जी, एक विद्यासागर प्रवचन हाल है। परिसर के सामने भी लगभग ४२.मुनिश्री धवलसागर जी, ४३.मुनिश्री सौम्यसागर जी, ५ एकड़ भूमि वर्तमान में क्रय की गई है। इसी के समीप | ४४.मुनिश्री अनुभवसागर जी, ४५.मुनिश्री दुर्लभसागर जी, अक्टूबर 2005 जिनभाषित 21 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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