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के पूर्व पाद में मानते हुए, आचार्य धरसेन महाराज को उनके । अनेक प्रकार की होती हैं। अतः इस संबंध में विभिन्न बहुत बाद प्रथम शताब्दी के मध्यम पाद और अन्तिम पाद | विद्वत् गोष्ठियों में साधुवर्ग एवं विद्वत्वर्ग से विचार-विमर्श का माना है। जैनेन्द्र सिद्धान्त कोष भाग-२, पृष्ठ २४४ पर | करने पर निम्नलिखित समाधान स्पष्ट होता है : आचार्य गुणधर का परिचय देते हुए, इनको विक्रम पूर्व ।
घटना : राजेन्द्रकुमार,देवेन्द्रकुमार दो भाई हैं। यदि प्रथम शताब्दी का माना है। जबकि आचार्य धरसेन महाराज राजेन्टकमार दहेज न मिलने के कारण अपनी पत्रवध को का परिचय देते हुए 'जैनेन्द्र सिद्धान्त कोष' भाग-२, पृष्ठ | जला देता है या उनकी पुत्रवधू, सास-ससुर से कहा-सुनी ४६४ पर उनका काल ईसवी सन् ३८ से १०६ माना है, जो |
| के कारण स्वयं जलकर आत्महत्या कर लेती है, तो बहुत बाद का, सिद्ध होता है। जैनेन्द्र सिद्धांत कोश' भाग१,पृष्ठ ४८६ पर क्षु. जिनेन्द्र वर्णी ने कहा है कि, 'आचार्य
(अ) राजेन्द्रकुमार के परिवार को ६ माह का सूतक
| लगेगा। यदि देवेन्द्रकुमार उसी घर में रहते हों और उसी गुणधर महाराज,आचार्य धरसेन महाराज से, अधिक नहीं तो
रसोई में भोजन करते हों तो उनको भी ६ माह का सूतक २-३ पीढ़ी पूर्व अवश्य होने चाहिए।'
लगेगा। यदि देवेन्द्रकुमार अलग रहते हैं और उनका इस इसके अलावा अन्य सभी इतिहास के विद्वानों ने
घटना से कोई संबंध नहीं है, तो उनको मात्र १२ दिन का आचार्य गुणधर महाराज को प्रथम लिपिबद्ध कर्ता मानते हुए
सूतक लगेगा। उनको आचार्य धरसेन महाराज से पूर्ववर्ती ही माना है। किसी भी इतिहास के ज्ञाता विद्वान् ने आचार्य धरसेन महाराज
(आ) यदि राजेन्द्रकुमार की पुत्रवधू ने किसी अन्य को, आचार्य गुणधर महाराज से पूर्ववर्ती नहीं माना है। अतः
कारण से आत्महत्या की हो, और उसमें उनके पति या जब आचार्य धरसेन का काल ही, आचार्य गुणधर से बाद
सास-ससुर द्वारा कोई परेशानी आदि न की गई हो, या वह का है। तब उनके शिष्य आचार्य पुष्पदंत का काल और
अचानक खाना बनाते समय जलकर मरण को प्राप्त हो गई उनकी रचना, आचार्य गुणधर महाराज और उनकी रचना
हो, तो पूरे परिवार को मात्र १२ दिन का सूतक लगेगा। कषायपाहुड़ से पूर्ववर्ती कैसे हो सकती है?
(इ) यदि राजेन्द्रकुमार शेयर व्यापार में घाटा हो उपर्युक्त सभी प्रमाणों का अध्ययन करने से यह
जाने के कारण आत्महत्या करके मर गये हों, तो पूरे परिवार स्पष्ट हो जाता है कि ग्रन्थों के लिपिबद्धकर्ता सर्वप्रथम
को १२ दिन का सूतक लगेगा। आचार्य गुणधर महाराज हुए। अतः इस आधार पर 'मंगलं उपर्युक्त सूतक-पातक के संबंध में यदि किन्हीं विद्वान् कुन्दकुन्दाद्यो' के स्थान पर, मगल पुष्पदन्ताद्या बालना | महोदय को कुछ भी कहना हो, तो अवश्य लिखने की कृपा किसी भी दृष्टि से उचित नहीं बैठता है। विद्वानों की विभिन्न
करें। गोष्ठियों में भी तथा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में भी 'मंगलं कुन्दकुन्दाद्यो' का लोप करना, अनुचित एवं निन्दनीय कहा
प्रश्नकर्ता : पं. आलोक जैन,ललितपुर । गया है। आचार्य कुन्दकुन्द का नाम इस श्लोक में से न जिज्ञासा : वर्तमान में कुछ आचार्य एवं मुनि, अन्य हटाकर, इस श्लोक को पूरा बोलते हुए, अपने गुरु का | आचार्य एवं मुनियों को हीन समझकर समाचार आदि नहीं स्मरण करना हर दृष्टि से उचित है और हमारे द्वारा वही | करते हुए सामने आने से भी कतराते हैं ? क्या उनका ऐसा प्रार्थनीय है।
करना उचित है? प्रश्नकर्ता : राजीव जैन, अमरपाटन।
समाधान : जैसी जिज्ञासा आपने की है, वैसी बहुत जिज्ञासा : आत्महत्या से संबंधित ६ माह का सूतक
से साधर्मी भाइयों के चिन्तन में निरन्तर आती रहती है। किसको और कब लगता है ?
वास्तव में दिगम्बरत्व को धारण करने वाले मुनि त्रिलोक
वन्दनीय होते हैं। सच्चा सम्यग्दृष्टि धर्मात्मा तो स्वप्न में भी समाधान : विभिन्न श्रावकाचारों एवं पूजा आदि की
सच्चे मुनियों की अवमानना नहीं करता। हम सभी ‘णमो पुस्तकों में आत्महत्या का पातक ६ माह का लिखा हुआ | लोए सव्वसाहणं' मंत्र कहकर उन्हीं निर्ग्रन्थ मनियों की मिलता है। इसके अलावा अन्य कुछ भी विस्तृत विवेचन | नित्यप्रति वंदना करते हैं । आचार्य कन्दकन्द ने 'दर्शन पाहड' नहीं मिलता। जबकि आत्महत्या से संबंधित परिस्थितिया में सपा कहा 24 अक्टूबर 2005 जिनभाषित
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