Book Title: Jinabhashita 2005 10
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 18
________________ अगस्त को देश के सभी भागों में सामूहिक पूजन और श्री । क्योंकि इसमें चिरकालीन बन्धुत्व और शान्ति नष्ट हो जायेगी। 1 जैनसमाज एक धार्मिक अल्पसंख्यक समाज है और बहुसंख्यक समाज का कर्तव्य है कि वे बहुसंख्यक होने के अपने कर्तव्य का निर्वहन करें। गिरनारजी तीर्थ बचाने के लिए संकल्प पत्र भरे गये। दिनांक ११ सितम्बर को सामूहिक पूजन के साथ-साथ जैनियों द्वारा एक दिन का उपवास रखा जायेगा। दिनांक ०६ नवम्बर को राज्यों की राजधानियों और जिला मुख्यालयों पर समाज की ओर से मौन जुलूस निकालकर ज्ञापन प्रस्तुत किये जायेंगे और १८ दिसम्बर को दिल्ली में विशाल मौन जुलूस (महारैली का आयोजन किया जायेगा । यह सर्वविदित है कि भारत में दो महान् संस्कृतियाँवैदिक संस्कृति तथा श्रमण (जैन) संस्कृति सदियों से साथसाथ चली आ रही हैं और दोनों संस्कृतियों को माननेवालों के बीच जो प्रेम, भाईचारा और सह-अस्तित्त्व चला आ रहा है, वह उदाहरणयोग्य है। कुछ असामाजिक तत्त्वों द्वारा उसमें जहर घोलने के प्रयास को सहन नहीं किया जाना चाहिए, (१) डर किसे भगवान का, अब पाप करने में उजागर । धर्म को घेरे खड़े हैं, राजनीति के निशाचर ॥ चोला पहिनकर प्यार का, अब वासना फिरने लगी। यातना की मार से, संवेदना घिरने लगी ॥ 16 अक्टूबर 2005 जिनभाषित सीमा जवानी तोड़कर, निर्वस्त्र होकर नाचती । भावी भयावह कल्पना से, वृद्धपीढ़ी काँपती ॥ कृष्ण गीता पर तुम्हारी, धूल अब चढ़ने लगी । बिटिया हमारी पश्चिमी, स्कूल में पढ़ने लगी ॥ Jain Education International गिरनार पर्वत स्थित जैन मंदिरों एवं चरणचिन्हों के कुछ फोटोग्राफ्स के ऊपर उल्लेखित घटनाओं के पूर्व लिये गये थे, दर्शाते हैं कि वहाँ पहले जैन मूर्ति एवं चरणचिन्ह के अलावा अन्य मूर्तियाँ नहीं थीं। केवल जैन मूर्तियाँ एवं चरणचिन्ह ही थे। जैनतीर्थ के स्वरूप को बदलकर अन्य स्वरूप बनाने के इरादे से वहाँ मूर्तियाँ रखी गई हैं और पुरातत्त्व से छेड़छाड़ की जा रही है । युवा पीढ़ी नई सदी की नई सीढ़ी, पीढ़ी युवा चढ़ने लगी । बिटिया हमारी पश्चिमी, स्कूल में पढ़ने लगी। अध्यक्ष, भारतवर्षीय दि. जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी, मुम्बई (२) For Private & Personal Use Only मनोज जैन 'मधुर' आदर्श अब इस देश का, तंदूर में सिकने लगा । या मगर का भोज्य बन, तालाब में फिकने लगा ॥ ब्रह्मचर्य का आचरण, इतिहास बनकर रह रहा । सद्गुणों का अब विषय, परिहास बन सब सह रहा ॥ अवतरित अब इस जहाँ में, किसलिए भगवान हो । इस धरा के जब मनुज का, हृदय ही पाषाण हो । ममता स्वयं अब स्वयं को, निज कोख में डसने लगी। बिटिया हमारी पश्चिमी, स्कूल में पढ़ने लगी ॥ सी ५/१३, इंदिरा कॉलोनी, बाग उमराव दुल्हा, भोपाल www.jainelibrary.org

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