Book Title: Jinabhashita 2004 07
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 19
________________ गिरनार एक ज्वलन्त समस्या : बहुसंख्यकों को भी अपने हृदय उदार बनाने होंगे कैलाश मड़बया कुछ वर्षों पहले उत्तरप्रदेश की बूढ़ी गंगा क्षेत्र के कंपिल | दानपत्र पर पश्चिम एशियाई नरेश की मुद्रा भी अंकित है। यह तीर्थ पर एक पुरातत्त्व-गोष्ठी में भाग लेने गया था। अनेक हिन्दु | काल ईसा पूर्व 1140 अनुमान किया गया। उन्हीं ऐतिहासिक पंडितों ने वहाँ स्थित मीनारों, मकबरों और मस्जिदों को इंगित | गिरनार के स्वामी के चरणों पर पिछले वर्षों से यहाँ कुछ गेरूए कर बताया कि देखिये यह स्पष्टतः मंदिरों एवं मठों को परिवर्तित | वस्त्रधारी लोगों की 'दादागिरी' देखकर मन पीड़ा से भर गया कर बनाये गये हैं। इसी तरह माण्डव की एक विशाल मस्जिद कि वहाँ जैनियों को, वे भगवान् नेमिनाथ की जय तक बोलने को भी शिव मंदिर में परिवर्तित कर स्थापित किया गया बताया नहीं देते। हाँ, चढ़ावा जरूर ग्रहण कर लेते हैं और शांत जाता है, इत्यादि! अभी बाबरी मस्जिद का प्रकरण शांत नहीं | जिनावलम्बी यह अन्याय वर्षों से सह रहे हैं? हुआ कि चिकमंगलूर (दक्षिण) में एक मुस्लिम इबादत स्थल मैंने अत्यंत विनम्रता से उन कथित गेरूये वस्त्रधारियों पर दत्तात्रय की समाधि का विवाद जारी हो गया। कुछ कथित (आचरण देखकर सन्त तो नहीं कह सकते) से ज्ञात करना विद्वान् तो आगरा स्थित ताजमहल को भी हिन्दूमहल को परिवर्तित चाहा कि आप जैनियों को भगवान् नेमिनाथ की जय क्यों नहीं कर, बताने में नहीं चूकते। आखिर इन विवादों का अंत कहाँ बोलने देते? तो त्रिशूल उठाकर वे हम पर आग बबूला हो उठेहोगा? "यह दत्तात्रय का स्थान है, नेमिनाथ की जय नहीं बोल सकते।" पिछले दिनों गुजरात स्थित गिरनार तीर्थ की यात्रा पर जाने | मैंने पूछा - जैन तो दत्तात्रय की जय बोलने से नहीं रोकते फिर का अवसर मिला तो यह देखकर हैरान रह गया कि जिन आप क्यों यह विष फैला रहे हैं ! यह सुनकर वे शेर की तरह वैदिकधर्मियों और जैनधर्मियों में कभी झगड़ा नहीं रहा, उन्हीं दहाड़ उठे- दम है जैनियों में जो हमें रोकें। हमने दत्तात्रय कह में कतिपय कथित महन्त अपनी दुकानदारी चलाने के लिए दिया तो नेमिनाथ कैसे हो जायेंगे? फिर नेमिनाथ की जय क्यों लट्ठमारी कराने पर उतारू हैं। मैं तो स्वयं ही पचास वर्षों पूर्व से | बोलेंगे? लोकगीतों एवं भजनों में सुनता आ रहा था; इतिहास में, पुराणों | इस समय हठधर्मिता का उनका क्रोध सातवें आसमान पर में यत्र-तत्र-सर्वत्र सभी जगह पढ़ता आ रहा था कि गिरनार | था, फिर भी मैंने सहजता से कुछ निम्न प्रश्न पूछे जिनका उत्तर पर्वत की पांचवी टोंक से जैन धर्म के बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ उनके पास नहीं था परन्तु बहुसंख्यक-बल का घमण्ड उनके मोक्ष गये थे। उनके श्रीचरण वहाँ विराजमान हैं इसलिए जैनियों | सिर पर चढ़कर बोल रहा था। के लिये गिरनार जी (गुजरात), सम्मेद शिखर के बाद दूसरा मेरा पहला प्रश्न था कि यहाँ दत्तात्रय कहाँ से आ गये, अत्यन्त पूज्य पर्वत है। जबकि आप लोग माउण्ट आबू के अचलगढ़ पर दत्तात्रय मंदिर प्रसिद्ध पुरातत्त्वविद् डॉ. फूहरर, प्रो. वारनेट, कर्नल टॉड | को मानते हैं। उधर आप दक्षिण में चिकमंगलूर के निकट की एवं डॉ. राधाकृष्णन, तीर्थंकर नेमिनाथ की ऐतिहासिकता को | मुस्लिम दरगाह को दत्तात्रय का मान रहे हैं। चित्रकूट में भी स्वीकारते हैं। टॉड ने तो खोजकर यह निष्कर्ष दिया था कि | दत्तात्रय हैं! तो असली दत्तात्रय का मूल स्थान कोई एक नियत नेमिनाथ की स्केण्डिनेविया की जनता में प्रथम 'ओडिन' तथा | तो करिए! (मंदिर भले ही कई हों!) वे चीखे- असली दत्तात्रय चीनियों के प्रथम 'फो' नाम के देवता तीर्थंकर नेमिनाथ ही थे। | यहीं हैं! 'भारतीय इतिहास एवं दृष्टि' (पृष्ठ 45) में डॉ. प्राणनाथ मेरा पुन: आधारभूत प्रश्न था- हिन्दुओं के समस्त तीर्थ नदी विद्यालंकार ने कठियावाड़ से प्राप्त एक प्राचीन ताम्रपत्र प्रकाशित के किनारे हैं यथा मथुरा, काशी, उज्जयनी, अयोध्या, वृन्दावन किया था। उक्त दान पत्र पर उल्लेख है कि सुमेर जाति में उत्पन्न आदि और जैनियों के प्रायः पर्वतों पर-जैसे शिखर जी, गिरनारजी, काबुल के रिवल्वियन सम्राट ने बुचंदनजर ने जो रेवानगर दिलवाड़ा, गोमटेश्वर, सोनागिरि आदि; तो आपका इस पहाड़ (कठियावाड़) का अधिपति था; यदुराज की द्वारिका में आकर पर तीर्थ कहाँ से आ गया? हाँ, कुछ देवियों के तीर्थ अवश्य गिरनार के स्वामी नेमिनाथ की भक्ति की तथा दान दिया था। पहाड़ों पर माने जाते हैं पर दत्तात्रय तो देवी हैं नहीं। जुलाई 2004 जिनभाषित 17 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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