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ग्रन्थ समीक्षा
जियाबाद
एवं प्रबंधन के सार्वभौमिक, सार्वकालिक सिद्धान्तों पर अन्वेषण । किया जा सके।
इस संस्थान में बहुभाषाविद् विद्वान या रिसर्च स्कालर हों, | पुस्तक का नाम - वास्तु विज्ञान जिन्हें आगम का पूर्ण ज्ञान हो, जो वैज्ञानिकों के साथ कन्धे से
(गह देवालय एवं प्रतिमा विज्ञान) कन्धा मिलाकर समर्पण भाव से कार्य कर सकें। इन जैन दर्शन
लेखक - पं. सनतकुमार विनोद कुमार जैन के विद्वानों का कार्यक्षेत्र जैनागम में निहित वैज्ञानिक तथ्यों, सूत्रों का तथा गाथाओं का संदर्भ सहित अर्थ अंग्रेजी तथा हिन्दी में प्रकाशक - देवेन्द्र कुमार (अजय) अभिषेक जैन वैज्ञानिकों के समक्ष रखें। वैज्ञानिक उनका आधुनिकतम खोज
(बिजली वाले) 1/6013 कबूलनगर से तुलनात्मक अध्ययन कर अन्वेषण के नये आयाम लिपिबद्ध
शाहदरा, दिल्ली-32 कर प्रयोगशालाओं में अनुसंधान हेतु भेजें।।
संस्करण - ये अध्ययन आरम्भ में तो प्राथमिक स्तर के हो सकते हैं,
प्रथम, 2004, पृष्ठ - 12+130, बाद में मध्यम एवं उच्चस्तरीय कार्यक्रम विकसित किये जा मूल्य
35.00 रुपये सकते हैं। उदाहरण के तौर पर खाद्य एवं अखाद्य आहार एवं
वास्तु विज्ञान लगभग एक दशाब्दी से वास्तु ज्ञान पेयजल सम्बन्धी मर्यादा, जीवाणुओं की उत्पत्ति, उनकी उत्पत्ति
का प्रचार-प्रसार बड़ी तेजी से हुआ है। के स्थान, इत्यादि के आलेख अनुसंधान हेतु निर्देश एवं नमूने
नवीन भवन का निर्माण कराने वाले तो देकर शासकीय एवं निजी प्रयोगशालाओं के माध्यम से उल्लिखित
वास्तुशास्त्रियों से सलाह लेते ही हैं पुराने तथ्यों की पुष्टि कराई जा सकती है। प्रयोगशाला के विश्लेषणों
मकानों में भी वास्तु के अनुसार परिवर्तन/ का संकलन कर आगम ग्रंथों का संदर्भ एवं उनकी प्राचीनता
परिवर्धन तेजी से हो रहा है। परन्तु यह देकर विश्वस्तरीय पत्रिकाओं में प्रकाशित करना चाहिए।
विधा/विद्या कोई नई नहीं है जैनागम में संस्था छोटे स्तर से आरम्भ की जाए। पूरी परियोजना को
इसका उल्लेख मिलता है साथ ही 'प्रासाद तीन या चार भागों में विभाजित किया जा सकता है एवं प्रयोगशाला स्थापित करने का कार्य बाद में एकीकरण विधि से किया जा
मंडन', वास्तुप्रकरण 'वत्थुविज्जा' आदि स्वतंत्र ग्रंथ भी जैन सकता है। यह कार्य आज की युवा एवं भावी पीढ़ी को विवेक
साहित्य में मिलते हैं। आवश्यकता थी एक संक्षिप्त किन्तु सर्वांग एवं आस्था का धरातल प्रदान करने में विशेष कार्यकारी हो
पुस्तक प्रस्तुत की जाये 'वास्तुविज्ञान' इसी कमी को पूरा करने सकता है। पूज्य श्री 108 आचार्य देशभूषण जी महाराज के
का सार्थक एवं प्रशंसनीय प्रयास है। शब्दों में : "विभिन्न धर्मानुयायी अपने गुड को मिश्री के रूप में भ्रातृद्वय पं. सनत कुमार विनोद कुमार जैन साहित्य/ संसार के सामने अपने अपने धर्म का प्रचार कर रहे हैं, तब जैन | विधिविधान में जाना पहचाना नाम है। सार्थ सिद्धचक्र विधान से समाज अपने मिश्री के समान अंदर बाहर से पूर्ण मिष्ठ जैन धर्म उन्हें प्रभूत यश और प्रतिष्ठा मिली है। को संसार के समक्ष यथेष्ट रूप संसार के समक्ष रखने में संकोच 'वास्तुविज्ञान' तीन खंडों (अध्यायों) में विभक्त हैं प्रथम कर रहा है। जैन समाज का यह महान अपराध है और इस खण्ड समुच्चय, द्वितीय खण्ड गृह वास्तु और तृतीय खण्ड देवालय अपराध का परिणाम कठोर बादाम, नारियल की तरह अवश्य
वास्तु । वास्तु शास्त्र का आरम्भिक ज्ञान प्राप्त करने के इच्छुक भुगतना पड़ेगा। दण्ड केवल शारीरिक मारपीट का ही नहीं होता
महानुभावों के साथ इस विषय में रूचि रखने वालों को पुस्तक है। धिक्कार घृणा का दण्ड भी सजन पुरुष के लिए बड़ा भारी अत्यन्त उपादेय है स्वयं लेखकद्वय के अनुसार 'यह पुस्तक एवं असहनीय होता है" समाज को एक सूत्र में पिरोने के लिए
वास्तु ज्ञान की पूर्ण पुस्तक नहीं कही जा सकती, इसमें विषय यह संस्था कार्यकारी हो सकती है।
को संक्षिप्त किया है।' पुस्तक में स्थान-स्थान रेखा चित्रों के ____ अत: मैं चतुःसंघ से निवेदन करता हूँ कि लेख के पठनोपरान्त
माध्यम से विषय को स्पष्ट किया गया है गणतीय माप देने में यदि ऊंचे तो क्रियान्वयन करने की दिशा में आगे बढ़े। मेरा
परिश्रम किया गया है। कलश, ध्वजा, ध्वजदंड आदि का भी योगदान समर्पित भाव से होगा।
स्वरूप बताया गया है। जन कल्याण की भावना से लिखी गयी ए-92, शाहपुरा,
इस कृति का सुधी पाठकजन भरपूर लाभ उठायेंगे ऐसी मंगल भोपाल 462039 (म.प्र.)
भावना है।
डॉ. ज्योति जैन
जुलाई 2004 जिनभाषित 23
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