Book Title: Jinabhashita 2004 07
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 30
________________ जिज्ञासा-समाधान पं. रतनलाल बैनाड़ा प्रश्नकर्ता : कल्पेश जैन, बारामती 2. मांस त्याग के अतिचार : चमड़े से सम्बन्धित हींग जिज्ञासाः क्या उत्सर्पिणी के छठेकाल एवं पंचमकाल में, | खाना, चलित रस वाले दूध-दही आदि को खाना, मर्यादा के वर्तमान की तरह विवाह आदि नहीं होते हैं? बाद पकवान खाना। अशुद्ध दवाएं बेचना। समाधान : उत्सर्पिणी के छठेकाल में स्त्री, मनुष्य और | 3. मधु त्याग के अतिचार : गुलकन्द खाना, मधु मिश्रित तिर्यंच नग्न रहकर पशुओं जैसा आचरण करते हुए क्षुधित होकर | दवाएं लेना, एनिमा, अंजन आदि में मधु प्रयोग करना। शहद वन प्रदेशों में धतूरे आदि वृक्षों के फल, फूल एवं पत्ते आदि बेचना। खाते हैं। उस काल के प्रथम भाग में आयु 15-16 वर्ष और | 4. जुआ व्यसन त्याग के अतिचार : किसी भी प्रकार का ऊँचाई एक हाथ प्रमाण होती है। इसके आगे आयु आदि बढ़ती | सट्टा करना, हार-जीत की भावना से होड़ लगाना तथा ताशजाती है। 21000 वर्ष के अतिदुखमा काल के समाप्त होने पर | पत्ते आदि खेलना। लॉटरी खरीदना आदि। दुखमा नामक पंचम काल आता है। इस पंचम काल में आहार | 5. वेश्या व्यसन त्याग के अतिचार : गीत-संगीत और आदि व्यवस्था छठे कालवत् रहती है। किन्तु आयु 20 वर्ष और | वाद्यों की ध्वनि सुनने में आसक्ति रखना। व्याभिचारी जनों की ऊँचाई 3-311 हाथ होती है। दुखमा काल के एक हजार वर्ष | संगति करना। वेश्यागृह गमन करना, सिनेमा, टी.वी. आदि शेष रहने पर इस भरत क्षेत्र में 14 कुलकरों की उत्पत्ति होने | देखना, बिना प्रयोजन घूमना आदि। लगती है। उस समय विविध प्रकार ही औषधियों के रहते हुए | 6.शिकार व्यसन त्याग के अतिचार : चित्रों का फाड़ना, भी पृथ्वी पर अग्नि नहीं रहती। तब कुलकर विनय से युक्त चित्र वाले वस्त्रों को काटना, फाड़ना, मिट्टी, प्लास्टिक आदि से मनुष्यों को उपदेश देते हैं कि मथकर आग उत्पन्न करो और | बने जानवरों को तोड़ना आदि। भोजन पकाओ, विवाह करो और बांधव आदिक निमित्त से | 7. चोरी व्यसन त्याग के अतिचार : भागीदार के भाग को इच्छानुसार सुखों का उपभोग करो। जिनको कुलकर इस प्रकार | हड़पना, भाई-बंधुओं का भाग न देना, अपने निकट की दूसरे की शिक्षा देते हैं, वे पुरुष अत्यन्त म्लेच्छ होते हैं। अन्तिम | की भूमि में अपना अधिकार बढ़ाना आदि। कुलकर के समय से विवाह विधियां प्रचलित हो जाती हैं। 8. परस्त्री सेवन त्याग व्रत के अतिचार : अपने साथ भावार्थ : इस प्रकरण से स्पष्ट है कि अंतिम कुलकर, जो । विवाह की इच्छा से किसी कन्या को दूषण लगाना, गंधर्व दुखमाकाल के अन्त में होते हैं, उनके काल से विवाह विधि | विवाह (लव मैरिज) करना, कन्याओं को उड़ाकर उनसे दुराचार प्रारम्भ होती है। इससे पूर्व पूरे छठेकाल और पंचमकाल में | करना आदि। विवाह विधि नहीं होती। देखें-तिलोयपण्णत्ति, अधिकार-4, गाथा | 9. रात्रि भोजन त्याग व्रत के अतिचार : दिन के प्रथम 1588 से 15961 तथा अन्तिम मुहूर्त में भोजन करना तथा दवा आदि लेना। रात्रि जिज्ञासा : पहली प्रतिमा में अष्टमूलगुणधारण और सप्त | में दूध, फलादिक का सेवन करना या दूसरों को खिलाना। रात्रि व्यसन का त्याग करना होता है तथा इसके अतिचार भी नहीं | में भोजन बनाना या रात्रि में बने पदार्थ खाना। लगने दिये जाते। कृपया इनके अतिचारों का वर्णन करें? 10. जलगालन व्रत के अतिचार : 48 मिनिट बाद बिना समाधान : इस प्रश्न के समाधान में "सागार धर्मामृत" छना पानी पीना । पतले और जीर्ण वस्त्र से पानी छानना। जिवानी अधिकार 3 में अच्छी तरह प्रकाश डाला गया है। उसी के | यथास्थान न डालना। अनुसार यहाँ लिखा जा रहा है। इतना विशेष है कि यदि उपरोक्त कार्य यदा-कदा हों तो 1. मद्य त्याग के अतिचार 'चौबीस घंटे बाद भी आचार, | अतिचार कहलाते हैं। नियमित होने पर व्रत भंग हो जाता है। मुरब्बा आदि तथा दही, छाछ का सेवन करना। वैद्यक गीली प्रश्नकर्ता : रवीन्द्र कुमार जैन, अशोकनगर दवाईयों का, होम्योपैथिक दवाईयों का, एलोपैथिक दवाईयों का | जिज्ञासा : निदान किसे कहते हैं, क्या अगली पर्याय अच्छी सेवन करना। तम्बाखू, भांग आदि नशीले पदार्थ खाना, बीड़ी, I मिलने की भावना भी निदान है? सिगरेट पीना, कोल्ड-ड्रिंक पीना, शराब आदि नशीले पदार्थ | समाधान : धर्मसेवन करके उसके फलस्वरूप आगामी बेचना।' भव में भोगों की आकांक्षा करना, इन्द्र, चक्रवर्ती आदि पदों को 28 जुलाई 2004 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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