Book Title: Jin Shasanna Mahapurushona Jivan Prasango
Author(s): 
Publisher: Bhuvanbhanusuri

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Page 14
________________ अवंति सुकुमाल अवंति सुकुमाल! (त्याग) (१) आ. आर्य सुहस्तीजी अश्वशाला में नलिनिगुल्म नाम के अध्ययन का रातको परावर्तन कर रहे हैं। यह अवंतिने सुना, जातिस्मरण ज्ञान हुआ । (२) दीक्षा ली, रात को अनशन कर स्मशान में ध्यानस्थ रहे। वहां पूर्वजन्म की स्त्री जो लोमडी बनी थी पाँव से पेट खाने तक पहुंची. समाधि मरण से मुनि नलिनिगुल्म विमान में गये। उनकी माता और स्त्रियोंने बहुत रुदन, विलाप किया । (३) वे सब अग्निसंस्कार कर (४) गुरु महाराज के पास आई, वैराग्योपदेश सुन कर (५) दीक्षा ली । (६) एक सगर्भा स्त्री घर में रही, पुत्र हुआ। उसने अवंति के अग्नि-संस्कार के स्थान पर अवंति पार्श्वनाथ का मंदिर बनवाया। आचार्य श्री भुवनभानु सूरीश्वरजी महाराज

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