Book Title: Jin Shasanna Mahapurushona Jivan Prasango
Author(s): 
Publisher: Bhuvanbhanusuri

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Page 20
________________ सुदर्शन सेठ सुदर्शन सेठ (व्रतनिश्चलता) (१) कपिलाने माया-झूठ से सुदर्शन को अपने घर लाकर विषय भोग करने का कहा, "मैं (परस्त्री के लिये) नपुंसक हूं" कह कर सुदर्शन का छूट जाना। (२) दासी मूर्ति के बहाने ध्यानस्थ सुदर्शन को उठा लाई, सुदर्शन की दृढता से आखिर निराश हो कर रानी बलात्कार का ढोंग रचकर चिल्लाती है। (३) ध्यानस्थ सुदर्शन को देहांत दंड। दैवीप्रभाव से सूलि का सिंहासन। राजा से बडा सन्मान, सत्य कथन और कलंक दूर होने से मनोरमा की ध्यान समाप्ति। (४) बरसों तक हर रोज छ: पुरुष व १ स्त्री का घातक यक्षावेश में अर्जुनमाली। (५) मारने आने पर भी सुदर्शन के नवकार के स्मरण से यक्ष का निकल जाना, अर्जुन का पाँव पडना, साथ-साथ भगवान के समवसरण में जाना। (६) अर्जुन की दीक्षा, मारे हुओं के संबंधियों ने मारे पीटे, समता से सहते अर्जुन को केवलज्ञान, मुक्ति। सुदर्शन की भी दीक्षा, व्यंतरी बनी हुई रानी के उपसर्ग सहते हुये मुक्ति। आचार्य श्री भुवनभानु सूरीश्वरजी महाराज

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