Book Title: Jin Shasanna Mahapurushona Jivan Prasango
Author(s): 
Publisher: Bhuvanbhanusuri

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Page 21
________________ सेवामूर्ति नंदिषेण सेवामूर्ति नंदिषण (श्रमणसेवा) (१) बदसूरत नंदिषेण के साथ मामाकी ७ में से १ भी लडकी ब्याह नहीं करती। (२) इसलिये आत्महत्या करते उस को, मुनिनें बचाया। (३) दीक्षा ली, आजीवन छट्ठ के पारणे आयंबिल और मुनिसेवा का अभिग्रह। ठीक पारने के समय परीक्षा करने मुनिरूप में देव आयें, फटकार कर ग्लान मुनि की सेवा का कहना। (४) वहाँ गये, बीमार साधुदेव ने भी अति कटु वचन सुनाये। बीमार साधुदेव के मलमूत्र साफ कर उन्हें अपनी पीठपर बैठाये, (५) ग्लान को पीडा न हो इतने धीरे चलने पर भी वे कठोर वचन कहते हैं। पीठ पर टट्टी पिशाब भी की, नंदिषेण को समता है। (६) दोनों साधुओंने देवरुप प्रगट कर क्षमा माँगी, बहुत प्रशंसा की। (७) नंदि ने अनशन कर स्त्रीवल्लभ बनूं यह नियाणा किया, बाद में स्वर्ग में, वहाँ से कृष्णजी के पिता वसुदेवजी, और क्रमश: मुक्ति। 8 आचार्य श्री भुवनभानु सूरीश्वरजी महाराज

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