Book Title: Jeetkalp Sabhashya
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 2
________________ आगमों के व्याख्या-साहित्य की श्रृंखला में अनेक भाष्य लिखे गए। उनमें व्यवहार, बृहत्कल्प और निशीथ के भाष्य विशालकाय हैं। उनकी तुलना में जीतकल्पभाष्य लघुकाय है किन्तु प्रायश्चित्त परंपरा की दृष्टि से यह बहुत महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। समणी कुसुमप्रज्ञा ने इसका अनुवाद कर एक महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। आचार्य तुलसी के वाचना प्रमुखत्व में अनेक आगमों का संपादन हुआ, उन पर भाष्य लिखे गए किन्तु निर्यक्ति और भाष्य पर काम करना अवशेष था।समणी कुसुमप्रज्ञा ने अनेक नियुक्तियों और भाष्यों का संपादन कर उस दिशा में एक श्लाघनीय कार्य किया है। उनमें काम करने की लगन है और एक आंतरिक प्रवृत्ति है। उनकी यह आंतरिक प्रवृत्ति आगे बढ़ती रहे। नियुक्ति और भाष्य की श्रृंखला में उनका कार्य अनवरत चलता रहे।

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