Book Title: Jeetkalp Sabhashya
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 9
________________ ग्रन्थानुक्रम समर्पण | * धारणा व्यवहार। अंतस्तोष जीत व्यवहार। मंगल संदेश * जीतव्यवहार के भेद। प्रकाशकीय * जीतकल्प के आधार पर प्रायश्चित्त में भिन्नता।४६ संकेत-सूची 11 * अन्य परम्पराओं में व्यवहार। . व्यवहार और प्रायश्चित्त : एक विमर्श 13 व्यवहारी की अर्हता। छेदसूत्रों का महत्त्व एवं उनकी संख्या। 13 प्रायश्चित्त भाष्य एवं भाष्यकार। 15 * प्रायश्चित्त क्यों? जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण : कर्तृत्व एवं समय। 21 * प्रायश्चित्त के स्थान। * रचनाएं .. | * प्रायश्चित्त-प्राप्ति के प्रकार। * विशेषावश्यक भाष्य एवं स्वोपज्ञ टीका। * प्रायश्चित्त की स्थिति कब तक? "बृहत्संग्रहणी * प्रायश्चित्त के भेद। * बृहत्क्षेत्रसमास | * अपराध के आधार पर प्रायश्चित्त के भेद। * विशेषणवती * प्रायश्चित्त-प्रस्तार। ' * अनुयोगद्वारचूर्णि | * प्रायश्चित्त वाहक। जीतकल्पसूत्र एवं उसका भाष्य। 25 * प्रायश्चित्त के लाभ। 'ग्रंथ वैशिष्ट्य 28. स्थविरकल्पी और जिनकल्पी के * भाषा शैली का वैशिष्ट्य। 29 प्रायश्चित्त में अन्तर। * कथाओं का प्रयोग। 31 . प्रायश्चित्तों के प्रतीकाक्षर। जीतकल्प चूर्णि एवं व्याख्या ग्रंथ। 32 . निर्ग्रन्थ और संयत में प्रायश्चित्त। जीतकल्प भाष्य पर पूर्ववर्ती ग्रंथों का प्रभाव। 32 . प्रायश्चित्त-दान में सापेक्षता एवं तरतमता। परवी अन्य ग्रंथों पर प्रभाव। 33 प्रतिसेवना व्यवहार 33 * प्रतिसेवना के भेद। * व्यवहार के भेद। 35 * दर्प प्रतिसेवना। * व्यवहार पंचक का प्रयोग। 36 * कल्प प्रतिसेवना। * आगम व्यवहार। 37 * दर्पिका और कल्पिका प्रतिसेवना में भेद। ..श्रुत व्यवहार। 40 * मिश्र प्रतिसेवना। .आज्ञा व्यवहार। 41 / प्रतिसेवना और कर्मबन्ध /

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