Book Title: Jeetkalp Sabhashya
Author(s): Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 12
________________ जीतकल्प सभाष्य 187 188 265 529 531 571 621 * स्तैन्य ग्रहण के अपवाद। 171 * हस्तप्रति-परिचय। * शैक्ष अपहरण में अपवाद। 171 * ग्रंथ का अनुवाद। * हस्तताल। 172 * आगम कार्य में नियोजन का इतिहास। * हस्तालम्ब। 173 * कृतज्ञता-ज्ञापन। * हस्तादान। 173 * मूल पाठ : विषय सूची * अनवस्थाप्य का कालमान। 174 * जीतकल्प सभाष्य * अनवस्थाप्य प्रायश्चित्त वाहक की देखभाल। 174 * अनुवाद * तप निर्वहन के बाद गृहीभूत और * परिशिष्ट उपस्थापना। 174 * पदानुक्रम * अनवस्थाप्य और पाराञ्चित में अंतर। 176 * कथाएं पाराञ्चित प्रायश्चित्त 176 * तुलनात्मक संदर्भ * पाराञ्चित के प्रकार। 177 * परिभाषाएं * आशातना पाराञ्चिक। 177 * एकार्थक * प्रतिसेवना पाराञ्चिक। 178 * दुष्ट पाराञ्चिक। * उपमा और दृष्टान्त / * कषाय दुष्ट पाराञ्चिक। * सूक्त-सुभाषित * विषय दुष्ट पाराञ्चिक। 179 * दो शब्दों का अर्थभेद * प्रमत्त पाराञ्चिक। * आयुर्वेद और चिकित्सा * अन्योन्य प्रतिसेवना पाराञ्चिक। 181 * देशी शब्द * आचार्य द्वारा पाराञ्चित तप का निर्वहन। 182 * विशेषनामानुक्रम * पाराञ्चित तप-वहनकर्ता की देखभाल। 182 * विषयानुक्रम * पाराञ्चित तप वहनकर्ता द्वारा संघीय-सेवा। 183 | * पाद-टिप्पण विषयानुक्रम * पाराञ्चित प्रायश्चित्त की समयावधि * वर्गीकृत विशेषनामानुक्रम में अल्पीकरण। 184 * जीतकल्प सूत्र से सम्बन्धित * पाराञ्चित प्रायश्चित्त के स्थान। 185 भाष्यगाथाओं का क्रम * अंतिम दो प्रायश्चित्तों का विच्छेद। * प्रयुक्त ग्रंथ-सूची * पाठ-संपादन की प्रक्रिया। * निरुक्त 644 652 654 657 659 178 179 662 180 663 666 672 681 684 695 186 696 187

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