Book Title: Jainagamo ka Vyakhya Sahitya
Author(s): Jinendra Jain
Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf

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Page 2
________________ PARAN 476, जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाडक (१) नियुक्ति साहित्य नियुक्ति शब्द को परिभाषित करते हुए आचार्य भद्रबाहु ने आवश्यकनियुक्ति(गाथा ८२) में कहा है- 'निज्जुत्ता ते अत्था, जं बुद्धा तेण होइ निज्जुत्ती । सूत्रार्थयोः पररपरं निर्योजन सम्बन्धन नियुक्तिः । -आ.नि.ग.टीका पत्र 100 आवश्यकचूर्णि में कहा गया है-सुत्तनिज्जुत्तअत्थनिज्जूहणं निजुत्ती। उक्त परिभाषाओं से यही फलित होता है कि सूत्र में नियुक्त (प्रकट विद्यमान) अर्थ की व्याख्या करना नियुक्ति है। आचार्य शीलांक, जिनदासगणि, कोट्याचार्य एवं अन्य टीकाकारों ने यही अर्थ नियुक्ति का किया है। अत: शब्द का सही अर्थ प्रकट करना ही नियुक्ति है। तत्कालीन प्रचलित शब्द के अनेक अर्थों को बताकर अंत में प्रस्तुत अर्थ का प्रकटीकरण हो नियुक्ति का प्रयोजन है। जिसे नियुक्तिकार ने साहित्य में निक्षेप पद्धति माना है। नियुक्ति' आगमों पर प्राकृत गाथाओं में लिखा हुआ संक्षिप्त विवेचन है। इसमें विषय का प्रतिपादन करने के लिए अनेक कथानक, उदाहरण और दृष्टान्तों का उपयोग किया गया है, जिनका उल्लेख मात्र वहां मिलता है। यह साहित्य इतना सांकेतिक और संक्षिप्त है कि बिना भाष्य और टीका के सम्यक् प्रकार से समझ में नहीं आता। इसलिए टीकाकारों ने मूल आगम के साथ-साथ नियुक्तियों पर भी टीकाएं लिखी हैं। पिण्डनियुक्ति और ओघनियुक्ति आगमों के मूल सूत्रों में गिनी गई है, इससे नियुक्ति साहित्य की प्राचीनता का पता चलता है कि वलभी वाचना के समय ईस्वी सन् की पांचवी-छठी शताब्दी के पूर्व (चौथी-पांचवीं शताब्दी में) ही नियुक्तियां लिखी जा चुकी थी। आचार्य भद्रबाहु ही एक मात्र ऐसे आचार्य हैं, जिन्होंने आगम-संकलन के समय से ही नियुक्तियां लिखना प्रारंभ कर दिया था। उन्होंने आचारांग, सूत्रकृतांग, सूर्यप्रज्ञप्ति, व्यवहार, कल्प, दशाश्रुतस्कंध, उत्तराध्ययन, आवश्यक, दशवैकालिक और ऋषिभाषित-इन दस सूत्रों पर नियुक्तियां लिखी हैं। इनमे से सूर्यप्रज्ञप्ति और ऋषिभाषित की नियुक्तियां अनुपलब्ध हैं। इसके साथ ही पिण्डनियुक्ति, ओघनियुक्ति का भी उल्लेख मिलता है। आराधनानियुक्ति का उल्लेख मूलाचार (५.८२) में किय गया है। आचारांग नियुक्ति- आचारांग सूत्र पर आचार्य भद्रबाहु ने प्रथम श्रुतस्कन्ध के आठ अध्ययनों (सातवां व्युच्छिन्न है) और द्वितीय श्रुतस्कंध की चार चूलिकाओं (पांचवी चूलिका निशीथ नियुक्ति के रूप में पृथक् उपलब्ध है जो निशीथभाष्य में सम्मिलित हो गई) पर ३५६ गाथाओं में नियुक्ति लिखी है। इन पर शीलांक ने महापरिण्णा नामक सातवें अध्ययन की दस गाथाओ को छोड़कर टीका की है। सूत्रकृतांगनियुक्ति- सूत्रकूटांगनियुक्ति में २०, गवाए हैं। उसमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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