Book Title: Jainagamo ka Vyakhya Sahitya Author(s): Jinendra Jain Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf View full book textPage 1
________________ जैनागमों का व्याख्या - साहित्य डॉ. जिनेन्द्र जैन जैन आगमों पर पाँच प्रकार का व्याख्या - साहित्य उपलब्ध है- १. नियुक्ति २. भाष्य ३. चूर्णि ४ टीका ५ टब्बा एवं हिन्दी आदि भाषाओं में विवेचन । नियुक्ति एवं भाष्य की रचना प्राकृत भाषा में हुई है। चूर्णि संस्कृतमिश्रित प्राकृत भाषा में लिखी गई है। टीकाएँ पूर्णत: संस्कृत भाषा में हैं। टब्बा गुजराती एवं राजस्थानी में हैं। इसके अनन्तर हिन्दी, अंग्रेजी और गुजराती में अनुवाद एवं विवेचन हुए हैं। जैन विश्वभारती लाडनूं के जैनागम विद्वान् डॉ. जिनेन्द्र जी ने नियुक्ति, भाष्य चूर्णि एवं टीका - इन चार विधाओं के व्याख्या साहित्य से प्रस्तुत लेख में परिचित कराया है। - सम्पादक जैन परम्परा में आगम- साहित्य का वही स्थान है जो वैदिक परम्परा में वेद का तथा बौद्ध परम्परा में त्रिपिटक का । आप्त वचन के रूप में महावीर की सुरक्षित वाणी ही आगम साहित्य है । इन आगमों में न केवल धर्म, दर्शन, अध्यात्म का विवेचन किया गया है, बल्कि ज्ञान-विज्ञान के ये अक्षय कोश कहे जाते हैं । समाज, संस्कृति, इतिहास, भूगोल, खगोल, पर्यावरण, आर्थिक चिन्तन सहित धर्म, दर्शन, न्याय जैसे विभिन्न विषय इसमें समाहित हैं T जैन आगमों को अंगप्रविष्ट एवं अंगबाहा इन दो भागों में विभाजित किया जाता है। द्वादशांग अंगप्रविष्ट के अन्तर्गत तथा शेष अंगबाह्य के अंतर्गत परिगणित हैं। आगमों का प्राचीनतम वर्गीकरण अंग एवं पूर्व के रूप में स्वीकार किया जाता है। आर्यरक्षित ने चार अनुयोगों में सम्पूर्ण आगम को विभाजित किया। आचार्य समन्तभद्र ने भी अनुयोग के आधार पर आगमों . का विभाजन किया है। लेकिन अंग, उपांग, मूल एवं छेद यह उत्तरवर्ती वर्गीकरण है। जैन परम्परा में आगमों की संख्या ३२, ४५ एवं ८४ मानी गयी है। दिगम्बर परम्परा के अनुसार अंग आगम उपलब्ध नहीं हैं। श्रुत परम्परा के नष्ट होने से उनका किसी को भी ज्ञान शेष नहीं रहा । श्वेताम्बर परम्परा में मूर्तिपूजक सम्प्रदाय ४५ आगमों को तथा स्थानकवासी एवं तेरापंथ सम्प्रदाय ३२ आगमों को स्वीकार करते हैं। जैन आगम सूत्रबद्ध होने से उनको व्याख्यायित करना अति आवश्यक था। आगम संकलन के साथ ही आचार्यों ने व्याख्या साहित्य लिखना प्रारम्भ कर दिया था। सर्वप्रथम आचार्य भद्रबाहु ने दश आगम ग्रंथों पर प्राकृत पद्यबद्ध निर्युक्ति साहित्य लिखा । तत्पश्चात् अन्य आचार्यों ने नियुक्तियों एवं स्वतंत्र आगमों पर भाष्य लिखे । भाष्य भी प्राकृत पद्यबद्ध हैं। इसके बाद चूर्णि टीका ग्रंथ भी व्याख्या साहित्य के रूप में लिखे गए, जिनका संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है--- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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