Book Title: Jainagamo ka Vyakhya Sahitya
Author(s): Jinendra Jain
Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf

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Page 5
________________ dition जैनागमों का व्याख्या साहित्य का भिन्न हैं, कल्पलघुभाष्य और पंचकल्पभाष्य के कर्ता के रूप में प्रसिद्ध हैं। जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने भी कुछ आगम ग्रंथों पर भाष्य लिखे हैं, कुछ संघदासगणिकृत तथा कुछ जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण द्वारा भाष्य लिखे गये हैं। आगमों पर लिखे गये प्रमुख भाष्य हैं-- १. बृहत्कल्प लघुभाष्य २. बृहत्कल्प बृहत्भाष्य(यह अपूर्ण है, तीसरे अपूर्ण उद्देशक तक प्राप्त), ३. महत् पंचकल्पभाष्य ४. व्यवहार लघुभाष्य ५. व्यवहार बृहत्भाष्य (अप्राप्त) ६. निशीथ लघुभाष्य ७. निशीथ बृहत्भाष्य (अप्राप्त) ८. विशेषावश्यक महाभाष्य ९. जीतकल्प १० उत्तराध्ययन ११. आवश्यकसूत्रमूलभाष्य १२. आवश्यक सूत्रभाष्य, १३. ओघनियुक्ति लघुभाष्य १४. ओघनियुक्ति महाभाष्य १५. दशवैकालिक भाष्य १६. पिण्डनियुक्ति भाष्य। महाकाय भाष्यों (महाभाष्यों) की संख्या आठ है-विशेषावश्यक, बृहत्कल्पलघु, बृहत्कल्पबृहत्, पंचकल्प, व्यवहारलघु, निशीथलघु, जीतकल्प और ओधनियुक्तिमहाभाष्य। महाभाष्य दो प्रकार से लिखे गए हैं. १. जिन पर लघुभाष्य नहीं, सीधे नियुक्ति पर स्वतंत्र महाभाष्य, जैसे विशेषावश्यक-महाभाष्य और ओघनियुक्ति महाभाष्य २. लघुभाष्य को लक्ष्य में रखकर महाभाष्य, जैसे बृहत्कल्पभाष्य (यह महाभाष्य अपूर्ण है)। निशीथ और व्यवहार पर भी महाभाष्य लिखे गए थे, लेकिन वे अनुपलब्ध निशीथ लघुभाष्य- निशीथ, कल्प और व्यवहार भाष्य के प्रणेता संघदासगणि माने गए हैं, जो वसुदेवहिण्डी के रचयिता संघदासगणिवाचक से भिन्न हैं। निशीथ लघु-भाष्य की अनेक गाथाएं बृहत्कल्पलघु-भाष्य से मिलती हैं। यह भाष्य बीस उद्देशों में ६७०३ गाथाओं में लिखा गया है। सर्वप्रथम पीठिका में सस, एलासाढ, मूलदेव और खण्डा नाम के चार धूर्ती की मनोरंजक कथा दी गई है, जिसका आधार अज्ञातकर्तृक धुत्तक्खाणग (धूर्ताख्यानक) नामक ग्रन्थ बताया गया है। भाष्य में यह कथा अत्यन्त संक्षेप में दी गई है, जिसे चूर्णिकार ने विस्तृत रूप से दिया है। आगे चलकर यह हरिभद्रसूरि के धुत्तक्खाणग नामक कथाग्रन्थ का आधार बना। कथा कहानियों आदि के माध्यम से साधुओं के आचार-विचार संबंधी अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों का प्रतिपादन यहां उपलब्ध होता है। व्यवहार भाष्य-निशीथ और बृहत्कल्पभाष्य की भांति व्यवहारभाष्य भी परिमाण में काफी बड़ा है। मलयगिरि ने इस पर विवरण लिखा है। व्यवहारनियुक्ति और व्यवहारभाष्य की गाथाएं परस्पर मिश्रित हो गई हैं। इस भाष्य में दस उद्देशकों में आलोचना, प्रायश्चित्त, गच्छ, पदवी, विहार, मृत्यु, उपाश्रय, प्रतिमाएं आदि विषयों को लेकर साधु-साध्वियों के आचार-विचार, तप. प्रायश्चित और प्रसंगवश देश-देश के रीतिरिवाज आदि का वर्णन है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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