Book Title: Jainagam Pathmala Author(s): Akhileshmuni Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra View full book textPage 8
________________ ( ६ ) आगम वार-बार स्वाध्याय से ही ज्ञानप्राप्ति में सहायक परन्तु आगम तभी सहायक सिद्ध होते हैं जब उन आगमों का पांचों अंगों से युक्त वार-वार स्वाध्याय किया जाय । वाचना, पृच्छना, पर्यटना, अनुप्रेक्षा और धर्मकया, ये स्वाध्याय के पाँच अंग हैं। इस विधि से जैनागम का स्वाध्याय करने पर ही अज्ञानरूप अन्धकार का भेदन और सम्यज्ञान आत्मज्ञान का प्रकाश प्राप्त होता है । उत्तराध्ययनसूत्र में गणधर श्री इन्द्रभूति गौतम के प्रश्न 'सम्झाएणं भंते जीवे कि जणयई' ? "भंते ! स्वाध्याय से जीव को क्या लाभ होता है ?" के उत्तर में वीतरागप्रभु महावीर उत्तर देते हैं-सज्झाएणं नाणा वरणिज्जं कम्मं खवेइ' स्वाध्याय से ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय होता है । * आगमों का स्वाध्याय करने से चित्त एकाग्र होगा, ज्ञान का उत्तरोत्तर विकास होगा, बुद्धि और भावना निर्मल होगी और कर्मों की निर्जरा (आंशिक क्षय) होगी । ज्ञानावरण कर्मों का क्षय होने से सम्यग्ज्ञान प्राप्त होगा ही । 'जैनागम पाठमाला, नामकरण क्यों ? यही कारण है कि प्रस्तुत ग्रन्थ का नाम 'जैनागम पाठमाला' रखा गया है । इसमें जीवन को सर्वांगीण रूप से ज्ञान परिपूर्ण बनाने वाले दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, नन्दीसूत्र, सुखविपाकसूत्र, दशाश्रुतस्कन्ध, चित्तसमाधि पंचम दशा, लोपपातिक सूत्र की प्रकीर्णक गाथाएँ, तत्त्वार्थसूत्र आदि आगम के सुवचन पुष्पों की सुन्दर माला गूंथी गई है । सेवाभावी श्री अखिलेशजी महाराज की प्रेरणा से पुस्तक को सर्वांगसुन्दर बनाने में सुप्रसिद्ध लेखक श्रीचन्द जी सुराणा 'सरस' ने पुरुषार्थ किया है । एतदर्थं उन्हें धन्यवाद ! आशा है, जीवन-निर्माण की दृष्टि वाले स्वाध्यायीजन इस पुस्तक का समादर करेंगे और सम्यग्ज्ञान की ज्योति जगा कर चारित्र के पथ पर बढ़ेंगे । सुज्ञे पुकिबहुना जैन भवन, लोहामण्डी, आगरा-२ दि० १-६-७४ - मुनि नेमिचन्द्रPage Navigation
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