Book Title: Jainagam Pathmala
Author(s): Akhileshmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ ४ तइयं अज्झयणं खुड्डिया यार कहा संजमे ते सिमेयमणाइण्णं सुट्टिअप्पाणं विप्पमुक्काण ताइणं । दसवेलियं निग्गंथाण महेसिणं ॥ १ ॥ उद्देसियं राइभत्ते सिणाणे य गंधमल्ले य कीयगडं नियागमभिहडाणि य । वीयणे ॥ २ ॥ किमिच्छए । सन्निही गिमित्ते य रायपिंडे संवाहणा दंतपहोयणा य संपुच्छणा देहपलोयणा य ॥ ३ ॥ अट्ठावए य नाली य छत्तस्स य धारणट्ठाए । तेगिच्छं पाणहा पाए समारंभं च जोइणो ॥ ४ ॥ 1 सेज्जायरपिंड च आसंदीपलियंकए गिहंतर निसेज्जा य गायस्सुव्वट्टणाणि य ॥ ५ ॥ गिहिणो वेयावडियं जा य आजीववित्तिया । तत्तानिव्वुडभोइत्तं आउरस्सरणाणि य ॥ ६ ॥ मूलए सिंगवेरे य उच्छुखंडे अनिव्वुडे । कंदे मूले य सच्चित्ते फले वीए य आमए ॥ ७ ॥ सोवच्चले सिंधवे लोणे रोमालोणे य आमए । सामुद्दे पंसुखारे य काला लोणे य आमए ॥ ८ ॥ धूवणेत्ति वमणे य वत्थीकम्म विरेयणे । अंजणे दंतवणे य गाया भंगविभूसणे ॥ ६ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 383