Book Title: Jainagam Pathmala
Author(s): Akhileshmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ दसवेआलियं वीसं अज्झयणं सामण्णधुत्वयं कहं नु कुज्जा सामण्णं जो कामे न निवारए। पए पए विसीयंतो संकप्पस्स वसंगओ॥१॥ वत्थगन्धमलंकारं इत्थोओ सयणाणि य । अच्छन्दा जे न भुंजन्ति न से चाइ त्ति वुच्चइ ॥ २ ॥ जे य कन्ते पिए भोए लद्धे विपिढिकुव्वई। साहीणे चयइ भोए से हु चाइ त्ति वुच्चइ ।। ३ ।। ता समाए पेहाए परिव्वयंतो सिया मणो निस्सरई वहिद्धा। न सा महं नोवि अहं पि तीसे इच्चेव ताओ विणएज्ज रागं ।। ४ ।। आयावयाही चय सोउमल्लं ___ कामे कमाही कमियं खु दुक्खं । छिन्दाहि दोसं विणएज्ज रागं एवं सुही होहिसि संपराए ॥ ५ ॥ पक्खन्दे जलियं जोइं धूमकेउं दुरासयं । नेच्छन्ति वन्तयं भोत्तुं कुले जाया अगन्धणे ।। ६ ।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 383