Book Title: Jain Tirth Yatra Darshak
Author(s): Gebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 213
________________ जैन तीर्थयात्रादर्शक। [१६२ हैं। स्टेशनसे १ मील दि० मेन बोर्डिग व धर्मशाला है। यहींपर १ मंदिर, बगीचा आदि सबका आगम है। आदिगया अनंतराया धर्मशाला पाम मोतीग्वानामें रहते हैं। यहांपर घर मंदिर हैं। उन सबमें मुंगा-मोती म्फटिकमणिकी पतिमा है। एक मंदिर रानवाडामें हैं। किमीको माथ ले कर दर्शन करना चाहिये। यहांका बामार बहा है । मामान सब मिलता है । फिर यहांपर पूछकर मोटर या गंगामें ६ मील की दूरीपर जंगलमें हैमुरकी पश्चिम दिशामें २) मवारी देकर गोमटपुगका दान करना चाहिये । १८) गोम्मटपुग।। बिलकुल जंगलमें १ पहाड है । उमपर एक प्राचीन मंदिर है । विजली गिरनेमे पहाड़ 'फटकर मंदिर भी टूट गया है । मगर प्रतिमाको चोट नहीं आई। प्रतिमा गोम्मट बायोकी प्राचीन १५ हाथ उंची वामन विगनमान है । सुना जाता है कि पहिले यहांका राना मनधर्मी था । घरमें चत्यालय । न साधुओं की मेवा करता था । इस गोम्मट वामीकी प्रतिमा का योदक, वंदना करके पीछे भोजन का था । आज नी इस नीर्थगन का जीर्णोद्धार कगनेवासा भी कोई नहीं है। मन नानिकी दशापर बड़ा दुःख होता है : लौटकर हर आवे। म्है मुम्के आगे मंदगिरिका १) म टिकिट लगता है। (२६९) मन्दगिरि । आरमी केरीसे रेल बदलकर हासन होकर मंदगिरि जाती है। फिर जैनबद्री (श्रवणबेलगोला) जाते हैं। फिर म्हसर, बेंगलूर, मंगलर होकर मूलबद्री आदि नाते हैं ।

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