Book Title: Jain Tattvadarsha
Author(s): Vijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Atmaram Jain Gyanshala

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Page 7
________________ प्रस्तावना. नमे जाता महावीरो, नद्वेषो कपिलादिषु ॥ युक्तिमद् वचनंयस्य तस्य कार्यः परिग्रहः ॥ १ ॥ इत्याचार्य श्री हरिजन सूरिः ॥ जैनदर्शन सर्व दर्शनोमां श्रेष्ठ बे, एम पूर्वाचार्य श्रीमद् हरिनद्र सूरिए षट्दर्शन समुच्चय नामना ग्रंथमां व ए दर्शनोना देवता तत्वप्रमुखना यथार्थ विचार प्रदर्शित करी सिद्ध करी बताव्यं बे. मोक्षा जिलाषी श्रात्माने मोक्षपद प्राप्त करवामां जैनदर्शननुं श्राराधन एज सत्य सा धान बे. साधन रत्नत्रयीनुं श्राराधन करवुं तेज बे. ज्ञान, दर्शन, चारित्र रत्नत्रय बे. श्री तत्वार्थमां " सम्यग् ज्ञान दर्शन चारित्राणि मोक्षमार्गः एम यथार्थ सिद्ध करी बताव्युं बे. 35 वेदांत यादि दर्शनमा मात्र ज्ञाननेज मुक्तिनुं साधन मानेलुं बे. दर्शन, चारित्र तो तेमनी गणनामांज नथी. जुर्ज शंकराचार्यकृत अपरोक्षानु भूति, तथा विद्यारण्य खामिकृत पंचदशी. श्री शंकराचार्यकृत आत्मबोधमां चारित्र अर्थात् क्रियानी जरुरीयात बतावी बे, परंतु दर्शन अर्थात् सम्यग्दर्शननी मोक्षप्राप्तिमां केटली आवश्यकता बे ते संबंधी विचार जैनदर्शन शिवाय बीजा कोइपण दर्शनमां बिलकुल बताव्या नथी. सम्यग्दर्शननुं यथार्थ स्वरूप तो मात्र जैनदर्शनना पूर्वाचार्य प्रणीत गहन ग्रंयोनुं अवलोकन करवाथीज जाणी शकाय बे, तेमां पण गुरुगम ज्ञाननी आवश्यकता बे. जैनदर्शनमां सम्यग्दर्शननी मुख्यता बे, कारण के ते शिवाय ज्ञान छने चारित्र मोक्ष प्राप्त कराववामां श्रसमर्थ बे; श्रप्रमाणे बेतां सम्यग्दर्शन अने सम्यग् चारित्रनु मूल कारण सम्यग् ज्ञान डे. जो सम्यग् ज्ञान प्राप्त थाय तो सम्यग् दर्शन अने सम्यग् चारित्र से - जे प्राप्त थाय बे, परंतु सम्यक् ज्ञान प्राप्त धनुं ते अति दुर्लन . जुदा जुदा दर्शनना श्राचार्यांनी विद्वत्ता तेज॑ना ग्रंथोनुं अवलोकन कर वाथी स्पष्ट रीते मालम पडे डे. जुदा जुदा दर्शनना ग्रंथो अवलोकन क रशो तो आपने सिद्ध थशे के सम्यग् ज्ञान मात्र जैनदर्शनना ग्रंथोमांज बे. अवलोकन करती वखते निष्पक्षपात मतिनी पुरी जरूर बे. बी

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