Book Title: Jain Tattvadarsha
Author(s): Vijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Atmaram Jain Gyanshala

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Page 15
________________ अनुक्रमणिका. १४ बीजा नैयायिक दर्शनना स्वरूपमां नैयायिक मतना गुरुना लिंग, तेना देवना अढार अवतारना नाम, प्रत्यक्षादि चार प्रमाण, अने सोल पदार्थना नाम, तथा तेना तर्कशास्त्रोनानाम. १४० १५ वैशेषिक मतनुं संदेपथी स्वरूप. १४१ १६ चोथा सांख्यमतनुं स्वरूप घणुं विस्तारथी. १४१ १७ पांचमां मीमांसक मत, तेनुं बीजुं नाम जैमिनीय, तेनुं स्वरूप १४८ १० नास्तिक चार्वाक दर्शन तेने लोक वाममार्गी कड़े बे ए नास्तिक दर्शन षट्दर्शनमां गणातुं नथी, तेनुं स्वरूप, तथा आ मत बृहस्पति नामना पुरुषथी उत्पन्न थयेल बे, तेनी कथा. १० प्रथम बौद्धमतमां पूर्वापर विरोध तथा ते मतनुं खंडन, २० बीजा नैयायिक मतमां पुर्वापर विरोध, तथा ते मतनुं खंडन. १६५ २१ श्रीजां वैशेषिक मतनुं खंडन. १५१ १६० १७ ११ यू २२ चोथा सांख्य मतनुं खंडन. १५ २३ पांचमां मीमांसक मतना खंडनमां वेदांतीयोना ब्रह्म (अद्वैत) नुं खंडन तो प्रथम ईश्वरवादमां करी चुक्या बीये, परंतु तेनुं अपर नाम जैमिनीय मत बे. तेनुं स्वरूप तथा खंडन. २४ वेदोमां जे यज्ञादि करीने हिंसा करवी लखेल बे, तेनुं खंडन. १८५ १५ चार्वाक ( नास्तिक) मतनुं पुर्वपक्ष उतरपक्ष पूर्वक खंडन. १९७ ॥ पांचमा परिछेदमां शुद्ध धर्मतत्त्वनुं स्वरूप कहेल बे, तेनी अनुक्रमणिका ॥ १ नव तत्वमां प्रथम जीव तत्वनुं स्वरूप. २०६ २ पृथ्वी आदि पांच स्थावरोमां जीवत्व सिद्ध करेल .. २०० ३ बीजा जीव तत्वना स्वरूपमां धर्मास्तिकायादिक द्रव्योनुं लक्षण २११ ४ त्रीजा पुण्य तत्वना स्वरुपमां पुण्य उपार्जन करवाना नव प्र कार, तथा ते बेंताली प्रकारे जोगववामां आवे बे, तेना नाम २१३ ५ चोथा पाप तत्वना स्वरूपमां कर्माजाव वादी नास्तिक तथा Sarita by पाप जे बे, ते श्राकाशना फुलनी माफक असत् बे तथा तेना फल जोगववानुं स्थान जे स्वर्ग अने नरक ते पण नथी, ए प्रमाणे कथन करवावालानुं निराकरण करीने पाप अढार प्रकारे बंधाय बे, अने ते ब्यासी प्रकारे

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