Book Title: Jain Tattvadarsha
Author(s): Vijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Atmaram Jain Gyanshala

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Page 10
________________ प्रस्तावना. तिना प्रमाणमां करताज नथी. जे कांश व्यय करे ने ते बीजार्जुना प्र. माणमा यत्किंचित् बे. श्रा प्रसंगे कोई सवाल करशे के हालमां जैनशालाउँ अनेक स्थले स्थापवामां आवी ते शुं ज्ञानदेत्रमा व्यय नथी ? उत्तर मात्र एटलोज डे के ते व्ययनी बीजा देवना व्यवनी साथे सरखामणी करशो, त्यारेज यथार्थ समजवामां आवशे. श्रावी जैनशालाउँमा महाविद्वान् शिक्षकोने राखी तीक्ष्ण बुजिवाला जैनना बालकोने उत्तरोत्तर गहन ग्रंथोनुं अध्ययन कराववामां पुष्कल अव्यनो व्यय करवानी जरूर बे, एटले सुधी के जे दरजे चैत्यक्षेत्र तथा प्रतिमाक्षेत्र वर्तमान कालमां प्रकाशित थयेल , ते दरो ज्ञानदेवने प्रकाशित करवानी जरूर बे. ज्ञानीने पुष्टि श्रापवी तेज ज्ञाननी पुष्टि , अने ज्ञानने पुष्टि श्रापवी ते ज्ञानीने खोराक श्रापवातुल्य . था बाबतमा वर्तमान कालना अन्यदर्शनीउनी पति तरफ दृष्टि करवी जोश्ए. अन्यदर्शनोना तमाम महान् ग्रंथो प्रगट थएला . विद्वान् पुरुषो ते प्रगट थएला ग्रंथोनुं अवलोकन करी शकेले. जेवी बुट विधानोने अन्यदर्शनोना ग्रंथोनी ने, तेवी जैनदर्शनना ग्रंथोनी नश्री. टुंकामां कहीए तो जैनदर्शनना ग्रंथो बिलकुल विस्तार पामेला नथी. जे प्रगट थयेला डे ते पण एवी पद्धतिमां के प्रवेशकने सहायक शिवाय मार्ग पण सूफे नहि. सारांश के जैनदर्शननुं ज्ञान केलवणी रूप थवामां तेवा प्रकारनी रचनानी वर्तमानमा अत्यंत खामी जे. श्रावी अनेक मुश्केलीउना कारणथी सम्यगज्ञान प्राप्त थर्बु ते वर्तमान कालना मनुष्योने अति उर्लज डे. सम्यग् ज्ञान, सम्यग दर्शन, सम्यक् चारित्र ते मोक्षमार्ग एवं जे प्रथम दर्शावेल ने तेनो सामान्य अर्थ आ प्रसंगे बताववानी जरूर . सम्यग् ज्ञान-ते आप्तप्रणीत तत्वखरूपनो यथार्थ अवबोध. सम्यग् दर्शन ते आप्त प्रणीत तत्व स्वरूपना यथार्थ अवबोधनो अनुनव, वा यथार्थ तत्व रुचि. सम्यक्चारित्र. ते आत्मस्वरूपमा, कर्मदय करवा निमित्ते रमणताकरवी. .सम्यग् दर्शन अने सम्यक् चारित्र, विस्तारथी स्वरूप बताववानो श्रा स्थले प्रसंग नथी. मात्र सम्यग् ज्ञानसंबंधी काश्क लखवानी आ

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