Book Title: Jain Tattvadarsha
Author(s): Vijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Atmaram Jain Gyanshala

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Page 11
________________ प्रस्तावना. Ա वश्यकता बे, तेथी पूर्वाचार्यप्रणीत ग्रंथनुं अनुकरण करी नवतत्व संबंधी aise विचार जाहेर करवा रजा लउं बुं. प्रणीत तत्व बे बे. १ जीव, २ जीव. बे तत्वना विस्ताररूप सात तथा नव तत्व बे. ते या प्रमाणे १ जीव, २ जीव, ३ पुण्य, ४ पाप, ५ - श्रव, ६ संवर, निर्जरा, बंध, ए मोक्ष. पुण्य, पापने बंधमां अंतनवी करवायी सात तत्व थाय बे. प्रथम जीवतत्व - जीव शब्द चेतन, आत्मा इत्यादि श्रर्थवाची बे. जीवन यथार्थबोध तेज प्रति गहन ज्ञान बे. जीवनुं अस्तित्व माननारा विद्वानोना विचारमां पण बहुज विचित्रता बे. जीव, ज्ञान, दर्शन, चारित्रयुक्त, सुख दुःख वीर्यवान् बे जव्यत्व, अजव्यत्व, प्रमेयत्व, सत्व, द्रव्यत्व, प्राणधारित्व, संसारित्व, सिद्धत्व, यदि ख अने परपर्या जीवने बे. ज्ञानादि जीवना धर्म बे. तेमना थकी जीव जिन्न पण नयी ने जिन्न पण नथी, परंतु ते बन्नेथी जिन्न जातिरूप जिन्नाजिन्न बे. जो ज्ञानादि धर्मोथी जीव जिन्न होय तो हुं जाएं बुं हुं जोटं बुं हुं सुखी, हुं दुःखी, हुं जव्य इत्यादि अनेद प्रतिपत्ति न थवी जोइए, अने ते तो प्राणीमात्रने बे; तेमज जो ज्ञानादि धर्मोथी जीव छाजिन्न होय तो था धर्मी अने आ तेना धर्म बे, एवी जेदबुद्धि न थवी जोइए. माटे ज्ञानादि धर्म थकी जिन्ना जिन्न एवोज जीव मानवो जोइए. वली जीव केवो बे ? कर्मना दोनो कर्त्ता बे, तेमज ते कर्मोना फलनो पण जोक्ता बे, चतुर्गतिरूप संसारमां कर्मना संबंधी परिभ्रमण करना बे. तेमज द्वादशविध तपप्रयोगथी सकल कर्मनो दय करी सिद्धत्व प्राप्त करनारो बे. या सर्व लक्षणो जीवना, चेतनना, श्रात्माना बे. जीव, पृथ्वी, छाप, तेज, वायु वनस्पतिकायनो तेमज बे, त्रण, चार के पांच इंडियवालो ने, एम नव प्रकारनो बे. प्रकारांतरे तेना ५६३ द पण यावे. बीजुं जीवतत्व - जीव करतां जेनां लक्षणो विपरीत होय ते जीव, ज्ञानादि धर्मवान्, रूप, रस, गंध, स्पर्शादिथी जिन्ना जिन्न, नरदेवादि जवांतरमां नहि गमन करनार, ज्ञानावरणीयादि कर्मनो कर्त्ता, तेमना फलनो जोक्ता, अने जडस्वरूप, सडन, पडन, विध्वंसनादि धर्मवान्,

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