Book Title: Jain Tantra Sadhna me Sarasvati Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari, Kamalgiri Publisher: Z_Aspect_of_Jainology_Part_3_Pundit_Dalsukh_Malvaniya_012017.pdf View full book textPage 9
________________ १६६ डॉ० मारुतिनन्दन तिवारी एवं डॉ० कमलगिरि सम्बन्धित विभिन्न यंत्रों और मंत्रों का भी विस्तृत उल्लेख किया है । भारतीकरूप में तो देवी के भयानक स्वरूप वाले वामाचार साधना के भी स्पष्ट सन्दर्भ हैं । इनमें स्त्रीमोहन तथा काम इच्छा पूर्ति से सम्बन्धित मंत्र विशेषतः उल्लेखनीय हैं। नवाक्षरो विद्या की तंत्र साधना “सुभगायोना" की उपस्थित में सम्पन्न होती थी । इस ग्रन्थ में सुन्दर स्त्रियों और देवांगनाओं ( वनिता कपाल यंत्र) को सम्मोहित करने वाले तथा शत्रुओं को अकाल मृत्यु देने और प्रेतालय भेजने से सम्बन्धित यंत्रों तथा मंत्रों का भी वर्णन हुआ है । उच्चाटन मंत्रों में फट् वषट् और स्वाहा जैसी तांत्रिक अभिव्यक्तियों का प्रयोग होता था । ये साधनायें श्मशान जैसे स्थलों पर की जाती थीं । इन साधनाओं से सम्बन्धित मंत्रोच्चार सुनने में भयावह होते थे । इनमें देवी के पाश, अंकुश और बाण जैसे आयुधों से युक्त भयंकर स्वरूप का ध्यान किया गया है । ग्रन्थों में सरस्वती मंत्र सिद्धि के समय आने वाली विभिन्न बाधाओं को दूर करने वाले सुरक्षा मंत्रों के भी उल्लेख हैं । " एलोरा (महाराष्ट्र), नालन्दा ( बिहार ), कुकिंहार ( बिहार ), गुर्गी ( रीवा, मध्य प्रदेश), हिंगलाजगढ़ (मन्दसोर, मध्य प्रदेश), लोखारी (बांदा, उत्तर प्रदेश), मल्हार (विलासपुर, मध्य प्रदेश), भुवनेश्वर (उड़ीसा) एवं भेड़ाघाट (त्रिपुरी, मध्य प्रदेश) जैसे स्थलों से मिली तांत्रिक प्रभावशाली बौद्ध एवं ब्राह्मण मूर्तियों की तुलना में जैन सरस्वती प्रतिमाओं में तंत्र का प्रभाव अत्यल्प रहा है । जैन परम्परा में मध्य काल में सरस्वती पूजन में तांत्रिक भाव की पूर्व स्वीकृति के बाद भी उनकी प्रतिमाओं में तांत्रिक प्रभाव बहुत कम दिखाई देता है। जैन मूर्तियों में सर्वदा सरस्वती का अनुग्रहकारी शान्त स्वरूप ही प्रदर्शित हुआ है । केवल कुछ ही उदाहरणों में विद्या, संगीत और अन्य ललितकलाओं की देवी सरस्वती के साथ शक्ति के कुछ तांत्रिक भाव वाले लक्षण मिलते हैं । जैन और ब्राह्मण परम्परा में सरस्वती के लक्षणों में अद्भुत समानता देखने को मिलती है । दोनों ही परम्पराओं की प्रतिमाओं में सरस्वती के करों में पुस्तक, वीणा, अक्षमाला, कमण्डलु, स्रुक, अंकुश तथा पाश जैसे आयुध दिखाये गये हैं । जैन ग्रन्थ आचारविनकर में उपर्युक्त आयुधों का उल्लेख जैन श्रुतदेवता और ब्राह्मणी दोनों ही के साथ हुआ है । सरस्वती के समान ही इसमें चतुर्भुजा, हंसवाहनी, ब्राह्मणी भी वीणा, पुस्तक, पद्म तथा अक्षमाला से युक्त बतायी गयी हैं । यद्यपि जैन ग्रन्थों में सरस्वती के साथ स्रुक का अनुल्लेख है, पर मूर्त उदाहरणों में उनके साथ सुक का अंकन अनेकशः मिलता है जो व्यावहारिक स्तर पर स्पष्टतः सरस्वती के ब्रह्मा से सम्बन्धित होने का संकेत है। भारतीकल्प, श्लोक ६५-७६. यद्यपि कुछ ध्यान मंत्रों में सरस्वती को जटा में अर्धचन्द्र और त्रिनेत्र से युक्त बताया गया है, किन्तु मूर्त उदाहरणों में ये विशेषताएँ नहीं मिलती हैं । ३. ॐ ह्रीं श्रीं भगवति वाग्देवते वीणापुस्तकमौक्तिकाक्षवलयश्वे ताब्जमण्डितकरे शशधरनिकर गौरि हंसवाहने इह प्रतिष्ठा महोत्सवे आगच्छ १. २. ४. Jain Education International आधारदिनकर, भाग २, पृ० १५८ (बम्बई, १९२३) ये मूर्तियां कुंभारिया के पार्श्वनाथ मन्दिर (पूर्वी भिति ल० १२वीं शती ई० ), तारंगा के अजितनाथ मन्दिर ( १२वीं शती० ई०), आबू के विमलवसही (देवकुलिका ४८ का वितान ल० ११५० ई० ) और जालोर के महावीर मन्दिर ( १२वीं शती ई०) में हैं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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