Book Title: Jain Tantra Sadhna me Sarasvati
Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari, Kamalgiri
Publisher: Z_Aspect_of_Jainology_Part_3_Pundit_Dalsukh_Malvaniya_012017.pdf

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Page 12
________________ १६९ जैनतंत्र साधना में सरस्वती क्रमशः पंचकूट बस्ती (हुम्चा, शिमोगा), शान्तिनाथ बस्ती (जिननाथपुर) तथा आदिनाथ मन्दिर (हलेबिड, हासन) से मिली है।' ध्यान-मुद्रा में विराजमान सरस्वती के साथ वाहन नहीं दिखाया गया है। देवी के करों में अभयाक्ष, अंकुश, पाश तथा पुस्तक प्रदर्शित हैं। इन मूर्तियों में विशाल एवं खुले नेत्रों और खुले तथा कुछ फूले हुए ओठों के माध्यम से देवी के शक्ति स्वरूप को प्रकट करने की चेष्टा की गयी है। पश्चिमी भारत के श्वेताम्बर जैन मन्दिरों, विशेषतः ओसियां, कुंभारिया, दिलवाड़ा (माउण्ट आबू) और तारंगा, में भी सरस्वती की पर्याप्त मूर्तियाँ हैं। ओसियां (जोधपुर, राजस्थान) के महावीर मन्दिर (८वीं शती ई०) की द्विभुजी और चतुर्भुजी प्रतिमाओं में देवी मयूर या हंस वाहन हैं। द्विभुजी देवी पद्म और पुस्तक, तथा चतुर्भुजी देवी (मुखमण्डप-पश्चिम), स्रुक, पद्म, पद्म एवं पुस्तक से युक्त हैं। ओसियां की जैन देव-कुलिकाओं (लगभग १०वीं-११वीं शती ई०) की चतुर्भजी मूर्तियों में हंसवाहना देवी की दो भुजाओं में पुस्तक और पद्म तथा दो में अभयमुद्रा और जलपात्र (या वरदाक्ष और पुस्तक) हैं। कुंभारिया (बनासकांठा, गुजरात) के महावीर, शान्तिनाथ, पार्श्वनाथ, नेमिनाथ और सम्भवनाथ मन्दिरों (११वीं से १३वीं शती ई०) पर भी सरस्वती की कई मूर्तियां हैं। इनमें ललितासीन सरस्वती हंसवाहना और चतुर्भुजा हैं। देवी के करों में वरदमुद्रा (या अभयमुद्रा या वरदाक्ष), पद्म, पुस्तक और जलपात्र (या फल) प्रदर्शित हैं। शान्तिनाथ मन्दिर (नवचौकी वितान) के एक उदाहरण में देवी के साथ दो नृत्यांगनायें भी आमूर्तित हैं । राजस्थान के पाली जिले में स्थित घाणेराव के महावीर मन्दिर (देवकुलिका, ११५६ ई०), तथा नाडोल के पद्मप्रभ मन्दिर (११वीं शती ई०) की मूर्तियों में ललितासीन सरस्वती के साथ वाहन नहीं दिखाया गया है। इनमें चतुर्भुजा देवी के हाथों में वरद या अभयमुद्रा, पुस्तक, वीणा तथा जलपात्र (या फल) प्रदर्शित हैं। माउण्ट आबू (राजस्थान) के विमलवसही (१२वीं शती के अन्त) और लूणवसही (१३वीं शती ई०) तथा तारंगा (मेहसाणा, गुजरात) के अजितनाथ मन्दिर (१२वीं शती ई०) के उदाहरणों में सरस्वती द्विभुजी, चतुर्भुजी, षड्भुजी, अष्टभुजी और षोडशभुजी हैं। देवी की भुजाओं की संख्या में वृद्धि भी भी उनके शक्ति पक्ष को ही प्रकट करती है। हंसवाहना चतुर्भुजी देवी सामान्यतः वरद (या अभयमुद्रा), पद्म, पुस्तक (या स्रुक या वीणा) तथा फल (या जलपात्र) से युक्त हैं। विमलवसही की दो सरस्वती प्रतिमायें विशेषतः उल्लेखनीय हैं। दक्षिी बरामदे के वितान की मूर्ति में देवी दो पुरुष आकृतियों से आवेष्टित हैं। नमस्कारमुद्रा में निरूपित इन आकृतियों के नीचे उनके नाम भी खुदे हैं। दाहिने पार्श्व की श्मश्रुयुक्त आकृति को लेख में “सूत्रधार लोयण" और बायें पार्श्व की मापक दण्ड से युक्त आकृति को "सूत्रधार केला" बताया गया है। ये दोनों क्रमशः १. समान लक्षणों वाली एक मूर्ति तमिलनाडु के तिरुपत्तिकुणरम् के मन्दिर में भी है। २. पार्श्वनाथ मन्दिर की पूर्वी भित्ति की मूर्ति में पद्म के स्थान पर स्रुक दिखाया गया है। इसी मन्दिर की कुछ अन्य मूर्तियों में पुस्तक के स्थान पर वीणा प्रदर्शित है। कुंभारिया के नेमिनाथ मन्दिर की कुछ मूर्तियों में पद्म और जलपात्र के स्थान पर झुक और वीणा दिखाये गये हैं। २२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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