Book Title: Jain Tantra Sadhna me Sarasvati
Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari, Kamalgiri
Publisher: Z_Aspect_of_Jainology_Part_3_Pundit_Dalsukh_Malvaniya_012017.pdf
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डॉ० मारुतितन्दन तिवारी एवं डॉ. कमलगिरि मन्दिर के मुख्य स्थपति और शिल्पी थे ।' प्रस्तुत मूर्ति सरस्वती के ललितकलाओं की देवी होने का स्पष्ट उदाहरण है। विमलवसही की भ्रमिका के वितान की एक षोडशभुजी मूर्ति में हंसवाहना देवी भद्रासन पर ललितमुद्रा में बैठी हैं और उनके हाथों में वरद-मुद्रा, शंख (वैष्णवी का लक्षण), वीणा (दो में), पाश, कर्तरोमुद्रा, लघुदण्ड (दो में-सम्भवतः मापक दण्ड), शृङ्खला (दो में), अंकुश, अभयाक्ष, फल, पुस्तक और जलपात्र हैं। दोनों पार्यों में नृत्यरत पुरुष आकृतियां भी बनी हैं जो देवी के संगीत की अधिष्ठात्री देवी होने की सूचक हैं।
लूणवसही में हंसवाहना देवी की चतुर्भजी और षड्भुजी मूर्तियां हैं। नवचौकी के चार स्तम्भों में से प्रत्येक पर सरस्वती की आठ-आठ लघु आकृतियां उकेरी हैं। इनमें चतुर्भुजा सरस्वती वरदमुद्रा (या वरदाक्ष), सनालपद्म (या पुस्तक), पुस्तक (या वीणा) और जलपात्र से युक्त हैं। दो उदाहरणों में सरस्वती चतुर्भजी हैं। ये उदाहरण देवकूलिका ११ की छत और रंगमण्डप के समीपवर्ती छत (उत्तर) पर उत्कीर्ण हैं। प्रथम उदाहरण में हंसवाहना देवी अभयाक्ष, पद्म (दो में), जलपात्र तथा ज्ञान-मुद्रा (मध्य की भुजाओं में) से युक्त हैं। दूसरे उदाहरण में देवी संगीत की देवी के रूप में निरूपित हैं। यहाँ देवी के दो हाथों में मंजीरा तथा एक में वीणा प्रदर्शित हैं; शेष में वरदाक्ष, चक्राकार पद्म और पुस्तक हैं।
तारंगा के अजितनाथ मन्दिर की चतुर्भुजी मूर्तियों में हंसवाहना देवी के करों में वरदमुद्रा, अंकुश (या स्रुक या पद्म या वीणा), पुस्तक तथा जलपात्र (या फल) प्रदर्शित हैं। मूलप्रासाद पश्चिमी भित्ति की मूर्ति में देवी षड्भुजी हैं और उनके हाथों में वरदमुद्रा, सूक, पुस्तक, पद्म और जलपात्र हैं। त्रिभंग (या अतिभंग) में खड़ी अष्टभुजी देवी की भी दो मूर्तियां हैं। इनमें देवी वरदमुद्रा, पद्म (या माला), पद्मकलिका, पुस्तक, पाश (या छत्रपद्म), पद्म-कलिक (या पाश), कलश और पुस्तक लिए हैं ।
जैन सरस्वती की प्रतिमाओं में निःसन्देह पल्लू (बीकानेर, राजस्थान) से प्राप्त दो प्रतिमायें कलात्मक दृष्टि से सर्वोत्कृष्ट हैं। समान लक्षणों वाली इन प्रतिमाओं में से एक राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली (संख्या १/६/२७८) और दूसरी बीकानेर के गंगा गोल्डेन जुबिली संग्रहालय (संख्या २०३) में सुरक्षित है। लगभग ११वीं शती ई० की इन त्रिभंग प्रतिमाओं में पद्मपीठिका पर लघु हंस आकृति भी बनी है। सौम्य स्वरूपा मनोज्ञ देवी करण्ड मुकुट और अन्य सुन्दर आभूषणों से सज्जित हैं। चतुर्भुजी देवी के करों में वरदाक्ष, पूर्ण विकसित पद्म, पुस्तक और जलपात्र हैं। पार्यों में वीणा और वेणु बजाती दो-दो स्त्री आकृतियां भी आकारित हैं, जो देवी की संगीत शक्ति की मूर्त अभिव्यक्ति है। गंगा गोल्डेल जुबिली संग्रहालय की मूर्ति में प्रभातोरण पर १६ महाविद्याओं की भी आकृतियां बनी हैं, जो सरस्वती की शक्ति अवधारणा को परिपुष्ट करती हैं ।
१. जयन्तविजय मुनि, होली आबू (अंग्रेजी अनु० यू० पी० शाह), भावनगर, १९५४, पृ० ५५,
पादटिप्पणी २. २. ये मूर्तियां मूलप्रासाद के क्रमशः दक्षिणी और उत्तरी भित्ति पर उकेरी गयी हैं । ३. बी० एन० शर्मा, जैन इमेजेज, दिल्ली, १९७९, पृ० १५-१९,
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