Book Title: Jain Tantra Sadhna me Sarasvati
Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari, Kamalgiri
Publisher: Z_Aspect_of_Jainology_Part_3_Pundit_Dalsukh_Malvaniya_012017.pdf

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Page 10
________________ जैनतंत्र साधना में सरस्वती प्रारम्भिक जैन ग्रन्थों में द्विभुजी सरस्वती को पुस्तक और पद्म (या जलपात्र या अक्षमाला) लिए तथा हंस पर आरूढ़ बताया गया है।' शुभचन्द्रकृत सरस्वतीयंत्र-पूजा में मयूरवाहनी द्विभुजी सरस्वती त्रिनेत्र तथा करों में अक्षमाला और पुस्तक से युक्त निरूपित हैं। शास्त्र और शिल्प दोनों में सरस्वती का चतुर्भुजी रूप ही सर्वाधिक लोकप्रिय था। वाहन के अतिरिक्त दोनों हो सम्प्रदायों में देवी के लक्षण समान हैं। श्वेताम्बर ग्रन्थों में सरस्वती को वरदमुद्रा, पद्म, पुस्तक और अक्षमालाधारी बताया गया है।' बप्पभट्टिसूरि कृत सरस्वतीकल्प (लगभग १०वी-११वीं शती ई०) में सरस्वती के आयुधों के दो समूह वर्णित हैं; एक में देवी अभयमुद्रा, वरदमुद्रा, पुस्तक और पद्म तथा दूसरे में अभय और वरदमुद्रा के स्थान पर वीणा और अक्षमाला से युक्त बताई गई हैं । मल्लिषेण के भारतीकल्प (लगभग ११वीं शती ई०) में देवी के अभयमुद्रा, ज्ञानमुद्रा, अक्षमाला और पुस्तक से युक्त स्वरूप का ध्यान किया गया है ।५ नवीं शती ई० के बाद श्रुत देवता यानी सरस्वती को संगीत की देवी के रूप में भी प्रतिष्ठित किया गया और वरदमुद्रा के स्थान पर उनके साथ वीणा का प्रदर्शन किया गया। संगीत से सम्बद्ध होने के बाद ही नृत्य के प्रतीक मयूर को देवी का वाहन बनाया गया। जिनेन्द्र कल्याणाभ्युदय में सरस्वती के एक हाथ में वीणा के स्थान पर पाश का उल्लेख मिलता है। पादलिप्तसूरि(तृतीय)कृत निर्वाणकलिका (लगभग ९००ई०) में सरस्वती के करों में पुस्तक, अक्षमाला, पद्म, वरदमुद्रा तथा कुछ अन्य आयुधों का उल्लेख हुआ है। सरस्वती की प्रारम्भिकतम प्रतिमा कंकालीटीला, मथुरा ( १३२ या १४९ ई० ) से प्राप्त हई है।' सम्प्रति यह मूर्ति राज्य संग्रहालय, लखनऊ में है। पीठिका पर उकडूं बैठी द्विभुजी देवी के १. बप्पभट्टिसूरि के चतुर्विशतिका (७६.१९) एवं शारदा स्तोत्र (श्लोक १-२, ८) में सरस्वती के आयुधों के दो स्वतंत्र समूह वर्णित हैं। इनमें सरस्वती के करों में कमण्डलु और अक्षमाला एवं पुस्तक और पद्म के उल्लेख हैं। २. यू० पी० शाह, 'आइकनोग्राफी ऑव सरस्वती', पृ० २०१, पा० टि० २९. ३. तथा श्रुतदेवतां शुक्लवर्णां हंसवाहनां चतुर्भुजा वरदकमलान्वितदक्षिणकरां पुस्तकाक्षमालान्वितवामकरां चेति । निर्वाणकलिका (पादलिप्तसूरिकृत-ल० ९०० ई.) १० ३७. (सं० मोहनलाल भगवानदास, मुनि श्री मोहनलाल जी जैन ग्रन्थमाला ५, बम्बई, १९२६) ""चोर्ध्वरूपामभयदवरदां पुस्तकाम्भोजपाणि । -सरस्वतीकल्प, श्लोक ११ . वीणापुस्तकमौक्तिकाक्षवलयश्वेताब्जवल्गत्करां ।-सरस्वतीकल्प, श्लोक ६." अभयज्ञानमुद्राक्षमालापुस्तकधारिणी । त्रिनेत्रा पातुभां वाणी जटाबालेन्दुमण्डिता ॥-भारतीकल्प, श्लोक २. मौक्तिकाक्षवलयाब्जकच्छपीपुस्तकाङ्कितकरोपशोभिते । श्रीशारदास्तवन (जिनप्रभसूरिकृत, ल० १२६३-१३३३ ई०) श्लोक ७ : भैरवपद्मावतीकल्प (पृ० ८१) से उद्धृत ७. यू० पी० शाह, 'आइकनोग्राफी आंव सरस्वतो', पृ० २०७, पाद टिप्पणी ५८. ८. यू० पी० शाह, पूर्व निर्दिष्ट, पृ० २११, पादटिप्पणी ७०. ९. के० डी० बाजपेयी, 'जैन इमेज ऑव सरस्वती इन दि लखनऊ म्यूजियम', जैन एन्टिक्वेरी, खण्ड ११, अ० २, जनवरी, १९४६, पृ० १-४, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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