Book Title: Jain Stotra Ratnakar
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 152
________________ १४८ मार्गप्रज्ञावना प्रवचनवत्सलत्त्व मि तितीर्थकृत्त्वस्य २३ ॥ परात्मनिंदा प्रशंसेसद सद्गुणावादनोद्भावने च नीचैगोंत्रस्य २४ || तद्विपर्ययो नीचे वृत्यनुत्सेको चोत्तरस्य २५ ॥ विघ्नक रणमंतरायस्य २६ ॥ ॥ इति षष्ठोऽध्यायः ॥ ॥ अथ सप्तमोऽध्यायः ॥ हिंसानृतस्तेयाब्रह्मपरिग्रहेज्यो विरतिर्नतम् १ || देश सर्वतोऽणुमह ती || तत्स्यैयर्थ जावनाः पंच पं च ३॥हिंसादिष्विहामुत्रचापायाव Jain Educationa Internationalsonal and Private Use www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180