Book Title: Jain Stotra Ratnakar
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 179
________________ १७५ स्तुति १ सरस शांति सुधारस सागरं, शुचितरं गुणरत्न महागरं; जविक पंकज बोध दिवाकरं, प्रतिदिनं प्रणमामि जिनेश्वरं. २ अद्याऽनवत् सफलता नयनद्वयस्य, देव त्वदीय चरणांबुज वीक्षणेन; अद्य त्रिलोक तिलक प्रतिज्ञासतेमे, संसार वारिधिरियं चुलुक प्रमाणः. ३ प्रशम रस निमग्नं दृष्टि युग्मं प्रसन्नः वदन कमलमंकः कामिनी संग शून्यः करयुगमपि यत्ते शस्त्र संबंध वंध्यं; तदसि जगति देवो वीतराग स्त्वमेव. Jain Educationa Internationalsonal and Private Use www.jainelibrary.org

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