Book Title: Jain Stotra Ratnakar
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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२४७ श्रदपारंपरिग्रहत्वं स्वनावमा वाजवत्वं च मानुषस्य १॥ निःशी लव्रतत्वं च सर्वेषां १५॥ सरागसंय मसंयमासंयमाकामनिर्जरा बानतपांसि देवस्य २०॥ योगवक्रतावि संवादनं चाशुनस्य नाम्नः १ ॥ विपरीतं शुजस्य २२ ॥ दर्शनविशु द्विविनयसंपन्न ताशीलतेष्वनति. चारोऽजीदाएं ज्ञानोपयोगसंवेगौ शक्तितस्त्यागतपसी संघसाधुसमा धिवैयावृत्यकरणमईदाचार्य बहुश्रु तप्रवचननक्तिरावश्यकापरिहाणि
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