Book Title: Jain Shraman Sangh ka Itihas
Author(s): Manmal Jain
Publisher: Jain Sahitya Mandir

View full book text
Previous | Next

Page 2
________________ २] वाले उन महान विभतियों की गौरव स्मृतियों कई बार किया था परन्तु खेद है कि हमारे बार बार को संकलित करना मेरे सामध्य से परे की वस्तु थी। निवेदन करने पर भी कई आचार्य को पर 'श्रमण' शब्दने मुझे श्रमशील बनाया। मैंने देखा वरों के सम्बन्ध में परिचय आदि प्राप्त करने पर जैन श्रमणों की गौरव गाथाएं तो एक महान् सागर असफल रहे हैं । एतदर्थ क्षमा प्रार्थी है। मान है। एक एक महा पुरुष के सद् कृत्यों पर २ मुनिवरों की परिचय प्रादि सामग्री पूज्य पदास्वतन्त्र पुस्तकें लिखने योग्य हैं। उनके सम्बन्ध में नुकम से नहीं दी जासकी है। अतः परिचयों का यदि खोज की जाय तो प्रचुर सामग्री उपलब्ध है आगे पीछे या ऊँचे नीचे देने आदि की जो अविनय और उसके संग्रह से जैन समाज आज के जगत में हुई हो तो उसके लिये भी हम हृदय से क्षमा प्रार्थी सबसे अधिक ज्ञान सम्पन्न सिद्ध हो सकेगा। हमारे पास भी काफी सामग्री संग्रहीत होगई ३ ग्रंथ में अनेक त्रुटि रह जाना स्वभाविक है। थी पर आर्थिक कठिनाइयों ने सभी आशाओं पर यदि सुज्ञजन उन्हें हमें सुझाने की कृपा करेंगे तो नपारापात किया है। उस पर समाज में साहित्य हम उनके प्रभारी होंगे। के प्रति यथेष्ठ अभिरुचि के प्रभाव ने, तथा मुनिवरों द्वारा पाशानुकूल सहयोग प्राप्त न हो सकने आदि आशा है हमारा यह प्रयास 'वर्तमान जैन श्रमण कई कारणों से; हमें खेद है कि यथेष्ट रूप में हम संघ को अपने महापुरुषों के पदचिन्हों पर प्रवर्तित । बनने की प्रेरणा प्रदान कर, साम्प्रदायिक भिन्नता सम्पूर्ण सामग्री प्रकाशित नहीं कर पा रहे हैं। यदि को भुलाते हुए, एक सूत्र में आबद्ध हो जैन धर्म की इस प्रथामावृति का अच्छा स्वागत हुआ तो आशा है, द्वीतिया वृति में कुछ विशेष सामग्री दी जा सकेगी। " । गौरव वृद्धि हेतु अवश्य प्रेरणा प्रदान करेगा। यद्यपि हमने अपनी जानकारी अनुसार प्रत्येक विनीतसम्प्रदाय के प्रायः सभी प्रमुख मुनिवरों की सेवा में, २०-६-५९ मानमल जैन "मार्तण्ड" उनके इतिहास पूर्ण सामुदायिक एवं व्यक्तिगत परिचय आदि भेजने का निवेदन केवल एक बार ही नहीं Shree Sudhammaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 ... 222