Book Title: Jain Shiloka Sangraha Pustika
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund

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Page 19
________________ चंटुं जो त्रीया तजाय ॥४४॥ मारे नाइनु ताणी तें पासुं, हलयो पाडवा कीधुं जो हांग ॥ तोमे अाठे ने मेली उलाली, वचन म कहेमो कामिनी वाहाली ॥४५॥ पीनजी हसता में एहवं ए ना ख्यं,तुमे हियामां गांठीने राख्यं ॥दिल खेंचीने व्ह न दीजें, अबला जातिनो अंत न लीजें ॥ ॥४६॥ तरुणी हसतां शुं तुमे तो का, पण अमे तो साचं सहा ॥ साची बेहेन तुं शालि भद्र केरी, फोकट वचन म कहेसो हिवे फेरी ॥ ॥४७॥ संजम लेवाने ते सज थइ, धन्नो शा लिनद्र बोलाव्यो जइ ॥ उठ बालसुं हुं थयो श्रागें, महावीर पासें जइ महाव्रत मांगें ॥ ॥४८॥ धन्नो शालिनद्र संजम धारी, थया वि पयनी वासना वारी॥नद्रा पुत्रने वोहोरावी रली या, वहुयर लेइने मंदिर वलियां ॥४९॥ वीर साथे ते देश विदेशे, विचरे वैरागी साधु सुवे ॥ तप करीने दुर्बल तने, बारे वरपने अंते ते बन्ने ॥ ५० ॥आव्या राजगृही नयरी ऊद्याने, मास उपवासी वधते वाने ॥आहारने काजें वी र आदेसें, पहोता नद्राने तेह निवेशे ॥५१॥

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