Book Title: Jain Shiloka Sangraha Pustika
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund

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Page 63
________________ ५९ सुतने जइ मिलवु, प्रवृत्ति कुंवर संघातें लडवुं ॥ ॥ ८६ ॥ पूवें ए कुंवर संघातें लडिया, ते तो ग्रंथादिक पुस्तकें चडिया ॥ रखे देशो मन मां कोइ राखो, बr शासतर पूरे बे साखो | ॥ ८७ ॥ शेष सरस्वति पार न पावे, तो कवि नि बुद्धि केमकरी गावे ॥ पूरो शिलोको की धो ए ठाम, हिवे कहुं बुं कवीनुं नाम ॥ ८८ ॥ नुंगणी त्रानो मिंगसर मास, शुक्र पदनो दिवस खास ॥ तिथि तेरस मंगलवार, करयो शिलोको बुद्धि प्रकार ॥ ८९ ॥ शहेर गुजरात रेहेवाशी जाणो, वीशा शिरमाली जात परिमा णो ॥ वाघेश्वरीनी पोलमा रहेबे, जेहवं बे तेहसू र शशी कहे बे ॥ ९० ॥ नथी जाणतो गणने नेद, कोइ म करशो माहरा पर खेद || कविजन आगल माहारी शी मती, दोष टालशे माता स रसती ॥ ९१ ॥ सूत्र सिद्धांत नथी हुं नण्यो, जाडा रेशमनो दोरको विण्यो । वात साची बेका यामां खोजो, विवेकी पुरुषो विचारी जो जो ॥९२॥ ॥ अथ श्री विमल मेतानो शिलोको लिख्यते ॥ सरसति समरूं बे कर जोडी, बंदु वरकांणो

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