Book Title: Jain Shiloka Sangraha Pustika
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund

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Page 30
________________ २६ गतमां कीरति जाची ॥ देवी पदमावती धरणें द्र राणी, आपो शुन मति सेवक जाली ॥ १ ॥ पार्श्व शंखेश्वर केरो शिलोको, मन धरीने सांभल जो लोको | देश वढीयारमांहे जे कहो, कलि कालमांहे जालम प्रगट्यो ॥ २ ॥ जरासंधने जादव वढीया, बांधी मोरचा दल बेहु लडिया || पडे सुनटने फाजु मुरडाय, कायर केतां तिहां नाशीने जाय ॥ ३ ॥ राग सिंधुयें सरपाइ वा जे, सुणी सुनटने शूरातन जागे ॥ थाये जुने कोई न थाके, त्यारें जरासंध बल एक ताके ॥ ॥ ४ ॥ बपन्न कुल कोडी जादव कहियें, एक एकथी चढीयाता लहीयें ॥ प्राण या पण पावा न जागे, एक मारे तो एकवीश जागे ॥ ५ ॥ लढतां एहनो अंत न आवे, करूं कपट तो रामतफावे ॥ इम चिंतिने मेली तिहां जरा, ढलियुं जादवनुं सैन्य तिहां धरा, ॥ ६ ॥ जरा लागीने जादव तिहां ढलिया, नेम कृष्णने बलभद्र बलिया ॥ त्रण पुरु पने जरा न लागी, कहे नेमने कृष्ण पाय लागी ॥ १॥ एहवो कोईक करो उपाय, जेणे जराते नाशी ने जाय ॥ कहे कृष्णने नेम कुमार, करो आाठम

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