Book Title: Jain Shiloka Sangraha Pustika
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund

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Page 25
________________ ३१ लें, कायर कंपेने डुंगरा डोले ॥ २३ ॥ हाथी ह बक्या ने जबक्या ऊंजार, तेजी वाठाने डरघा दिगपाल || पवन थंच्यो ने धरती घेराई, कृष्ण जी कहे सुणो बलभद्र नाई ॥ २२ ॥ कोईक न घो ते वेरी वतयो, महोटो बलवंत मचरं रियो ॥ नादें अनहद अंबर गाजे, एहवो शख ते केणे न वाजे ॥ २३ ॥ त्रिभुवन मांहे तो कोई न सूजे, चक्री बारे ने इंद्र अलूजे ॥ जदुनाथ नेथई ते जाण, वात सुणी ने थया हैराए ॥ २४ ॥ धूजे नूधर चिंते मनमांय, राज काज ते मेल्या कवाय ॥ सगुण सोनागी साहासिक शूरो, ए के वातें ए नहीं अधूरो || २५ || मुकधी बलियो ए महाबलधारी, मोटे सांसे ते पड्यो मुरारी ॥ बली वली मनमां चिंते वनमाली, राज्य मा रूं लेशे उलाली ॥ २६ ॥ इणे वसरें नेम कु मार, मलपता आव्या सना मकार ॥ आघा आ वोजी आदर दीधो, सना सह कोई परणाम कीधो ॥२७॥पाणी पसारी शारंग पाणी, मुहथी बोल्यो ते एहवी वाणी ॥ याज परखीयें बल तुमारो, नेम न मावो हाथ अमारो ॥ २८ ॥ काचीकांब जि

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