Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 02 Author(s): M A Shastracharya Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti View full book textPage 8
________________ जैन - शिलालेख - संग्रह द्वितीय भाग १ दिल्ली (टोपरा ) - प्राकृत । अशोकके सातवें धर्मशासन-लेखका अन्तिम भागे [ लगभग २४२ ईसवी पूर्व ] [१] मढ़िया च वादं वढिसति [1] एताये मे अठाये धमसावनानि सावापितानि धमानुसार्थिनि विविधानि आनपितानि [ यथा मं पुलि सापि हुने जनसि आयता एते पलियोत्रदिसंति पि पविथलिनतिपि [|| उजूका पि बहुकेतु पानमतसहसेसु आयता ते पि मे आनपिता[] हेच हे च पलियोवदाय [ २ ] जनं श्रमयुतं [1] देवानं पिये पियदसि हवं आहा [:] एतमेव मे अनुवेश्यमान गभानि कटानि [] धममहामाना कटा [] धम - [सावने] कटे [1] देवानं पिये पियदसि लाजा हे आहा [ : ] मगेसुपि मे निगोहानि लोपापितानि [:] छायोपगानि होसंति पसुमुनिमानं [;] अंबाबडिक्या लोपापिता [] अटकोसिक्यानि पि मे उदुपानानि [३] खानापितानि []] निसिधियाच कालापिता [] आपानानि में बहुकानि तत तन कालापितानि पटीभोगाये पसुमुनिसानं [1] [ के चु] एस पटीभोगे नाम [1] विविधायाहि सुखायनाया पुलिमेहिपि लाजी १. ए कनिंघम, Corpus inscriptiomum indicarum, Vol. 1, Inscriptions of Asoka, p. 115, t.Page Navigation
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