Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 02
Author(s): M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 12
________________ १० जैन-शिलालेख संग्रह ' [१५] सुविहित श्रमणों के निमित्त शास-नेत्रके धारकों, ज्ञानियों और तपोबलसे पूर्ण ऋषियोंके लिये (उसके द्वारा) एक संधायन (एकत्र होनेका भवन) बनाया गया। अर्हत्की समाधि (निषया) के निकट, पहाड़की ढालपर, बहुत योजनोंसे लाये हुए, और सुन्दर खानोंसे निकाले हुए पत्थरोंसे, अपनी सिंहप्रस्थी रानी 'पष्टी' के निमित्त विधामागार [१६] और उसने पाटालिकाओंमें रन-जटित स्तम्भोंको पचहत्तर लाख पणों (मुद्राओं) के व्ययसे प्रतिष्ठापित किया । वह (इस समय) मुरिय कालके १६४ वें वर्षको पूर्ण करता है। वह क्षेमराज, वर्द्धराज, भिक्षुराज और धर्मराज है और कल्याणको देखता रहा है, सुनता रहा है और अनुभव करता रहा है। [१७] गुणविशेष-कुशल, सर्व मतोंकी पूजा (सन्मान ) करनेवाला, सर्व देवालयोंका संस्कार करानेवाला, जिसके रथ और जिसकी सेनाको कभी कोई रोक न सका, जिसका चक्र (सेना) चक्रधुर (सेना-पति) के द्वारा सुरक्षित रहता है, जिसका चक्र प्रवृत्त है और जो राजर्षिवंश कलमें उत्पन्न हुआ है, ऐसा महाविजयी राजा श्रीखारवेल है। इस शिलालेखकी प्रसिद्ध घटनाओंका तिथिपत्रबी. सी. (ईसाके पूर्व) , १४६० (लगभग) ... केतुभद्र " ...४६० (लगभग)... कलिंगमें नन्दशासन " [२३० ... अशोककी मृत्यु] ,, [२२० (लगभग) ... कलिंगके तृतीय-राजवंश का स्थापन] , १९७ ... ... खारवेलका जन्म , [१८८ ... ... मौर्यवंशका अन्त और पुष्यमित्रका राज्य प्राप्त करना] " १८२ ... ___... खारवेलका युवराज होना M[१८. (लगभग ... सातकर्णि प्रथमका राज्य प्रारम्भ]

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