Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 02
Author(s): M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 10
________________ अशोकका धर्मशासन [ ८ ] वढिसंति च मातापितृसु सुसुसाया गुलुसु सुसुसाया क्योमहालकानं अनुपटीपतिया 'बामनसमनेषु कपनवलाकेसु आव दासभटकेसु संपटीपतिया [1] देवानंपिये [पि] यदसि लाजा हेवं आहा [:] मुनिसानं चु या इयं धमवढि बढिता दुवेहि येव आकालेहि धमनियमेन च निझतिया च [९] तत च लहु से धमनियमे [,] निझतिया व भुये [] धमनियमे च खो एस ये मे इयं कटे इमानि च इमानि जातानि अवधियानि [,] अंनानि पिचु बहु [कानि] धमनियमानि यानि मे कटानि [1] निझतिया व चु भुये मुनिसानं धमवढि वढिता अविहिंसाये भुतानं [१०] अनालंभाये पानानं [] से एताये अथाये इयं कटे [,] पुतापपोतिके चंदमसुलियिके होतु ति] तथा च अनुपटीपजंतु ति [1] हेवं हि अनुपटीपजंत हिंदतपालते आल होत [] सतविस तिवसाभिसितेन मे इयं धंमलिबि लिखापापिताति [ ] एतं देवानंपिये आहा[:] इयं [ ११ ] धमलिबि अत अथि सिलायंभानि वा सिलाफलकानि वा तत कटविया एन एस चिलठितिके सिया । [ यह धर्मशासन-लेख अशोकके द्वारा महास्तम्भोंपर लिखाये गये लेखोंमैले अन्तिम है। इसको कोई-कोई आठवां धर्मशासन - लेख ( Edict ) मानते हैं, तो कोई मात्र सातवें धर्मशासन-लेखका ही अन्तिम भाग मानते हैं । इसमें बताया है कि सम्राट् अशोकने अपने राज्याभिषेकसे २७ वें वर्षमें यह धर्मशासन लेख लिखाया था । इसमें उसने अपने द्वारा नियोजित धर्ममहामात्योंका उल्लेख किया है । ये धर्ममहामात्य 'संघ' ( बौद्धसंघ ), भाजीवक, ब्राह्मण और निर्मन्थोंकी देखरेख रखनेके लिये

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