Book Title: Jain Shiksha Part 03 Author(s): Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 7
________________ ५ ) - राम तुम मीठे बहुत बोलते हो पर अब मैं केकयी तुम्हारे फंदे में नहीं आने की । राम - फंदे में नहीं आना चाहिए माताजी, आपका फरमाना ठीक है । पिता श्री की तरफ घूमकर राम बोले – पिताजी ! पिताजी !! आप वीर क्षत्रिय हैं, आपको माताजी के वचन सुनकर घबराना नहीं चाहिये । आप आनन्द से माता का वचन पूरा कीजिये, मुझे वन में कुछ भी दुःख नहीं उल्टा एकान्त में आनन्द मिलेगा । { केकयी - राम ! यदि मैं कुछ अन्याय से कहती होऊँ तो तुम ही बोलो । राम-- नहीं माताजी ! आप महारानी ! अन्याय से कैसे बोल सकती हैं ? आप तो यह राज्य मेरे प्रिय भाई भरत के लिए मांग रही हैं न । न्याय के अनुसार किसी रास्ते चलने वाले के लिये मांगती तो भी अनुचित नहीं था; तो यह तो मेरे भाई के लिये भला कैसे अयोग्य हो सकता है ? राम वनवास को चले गये, क्या बुरा किया ? संसार के लिए आदर्श खड़े हुए और लौटते समय लंका का राज्य अपने साथ लेते आये | इतने समय तक भरत नेPage Navigation
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