Book Title: Jain_Satyaprakash 1954 03
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir શ્રી. જૈન સત્ય પ્રકાશ [१:१८ नामानुसार २१ पदोंके विवेचनमेंसे १४ वें पदका विवेचन चल रहा है । अर्थात् ७ पदोंका विवेचन अभी और मिलना चाहिए। १३ पदोंके विवेचनमें ६७ कथाएं आई हैं । इस हिसाबसे और बहुतसी कथाएं और वर्णन आगेके अंशमें होगा जो बहुत महत्त्वका होना चाहिए । अतः इस ग्रन्थकी कहीं किसी सज्जनको पूर्ण प्रति या अंतिम अंश उपलब्ध हो तो हमें सूचित करने का अनुरोध करते हुए प्राप्त प्रतिका संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है इस ग्रन्थका नाम 'पदैकविंशति ' रखना सकारण है क्योंकि इसमें २१ पदोंका विवेचन किया गया है। मंगलाचरण के अनंतर कविने उन २१ पदोंका नाम एक श्लोकमें देकर बतलाया है । आदिके दो श्लोक यहां दिये जा रहे हैं: चरणकमलयुग्मं वर्द्धमानस्य नत्वा भवभयपरिभेत्तुश्छेत्तुरहो लतायाः । विबुधभविकबुबै दर्शायेष्ये स्वलब्ध्यै, स्वपरसमयविज्ञातोपदेशप्रपंचः ॥१॥ शुद्धो है गुम आर्हतमते, पंचप्रकारे यौ', हातौ मर्दिव आर्जवे पुर्नीने च "शोले तथा, सद्भावे तसा सहोरणे सझनसम्यक्कियों ___ भ्यासेऽन्यत्र शुभे च नितिकृते संतो रतिं कुर्वताम् ॥२॥ द्वारवृत्तमिदम् ॥ उपर्युक्त गुणों का विवेचन करते हुए दृष्टान्तरूपमें अनेक कथाएं दी गयो हैं । ये कथाएं कितनी ही शास्त्र, पुरान, कुराण और इतिहाससे संबन्धित हैं । ग्रन्थके प्राप्त अंशकी कथासूची यहां दी जा रही हैं। १ जिनराजपूजाविषये-१ देवपालभूपाल संबन्ध, २ कुमारपालभूपाल संबन्ध, ३ दुर्गता दृष्टान्त, ४ अंबिका सम्बन्ध, ५ कुंतला दृष्टान्त. २ शुद्धगुरुपदविषये-१ नागार्जुन कथा, २ जगडू साधु उदाहरण, ३ श्रीकर्णदेव मयणिल्ल कथा ४ सिद्धसेनसूरि कथानक, ५ धनदत्त दृष्टान्त ६ रत्नद्वीपराज दृष्टान्त. ३ शुद्धधर्मपदविषये-१ गज्ञां मोचिततस्करकथा, २ धर्मराज संवन्ध, ३ कपोत मिथुन दृष्टान्त, ४ वज्रायुद्धराजकथा, ५ (पौराणिक) अणी मांडय दृष्टान्त, ६ मातापुत्रयोदृष्टान्त, ७ हरिबल मात्स्यिक सम्बन्ध. ४ सम्यक्त्व विषये-१ धनपाल पंडित सम्बन्ध, २ कुलानंद श्रेष्ठि कथा. ३ जिनदास श्रावक सम्बन्ध. ४ कण्डेश्वरी देवी सम्बन्ध. ५ नरवर्म राजकथा. ६ सुलसा सम्बन्ध. ७ श्रेणिक महाराज सम्बन्ध । For Private And Personal Use Only

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