Book Title: Jain_Satyaprakash 1954 03
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 22
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२] શ્રી જન સત્ય પ્રકાશ वर्णनोमेंसे कई कई तो पर्याप्त विस्तृत और सौष्ठवपूर्ण है। वन, भोजन, अलंकार, वाजिंत्र, और भौगोलिक नामसूची भारतीय प्राचीन संस्कृतिके कितने ही अज्ञात और महत्त्वपूर्ण बातों पर प्रकाश डालती है। समस्त तुकान्त वर्णनात्मक गद्यांशकी सूची इस प्रकार है:-- मेघवर्णन, तृपगुणवर्णन, वाणी, श्रावकगुणवर्गन, राजवर्णन, दुष्कालवर्णन, महाजनविरुद, मंत्रीवर्णन, उज्जैनवर्णन, गजवर्णन, अश्ववर्णन, चोरवर्णन, वनवर्णन, दुष्टस्त्रीवर्णन, शीतकालवर्णन, देशनाम, समवसरण, अटवी, युद्ध, धर्म, लक्ष्मीवंत, निर्धन, शीलवर्णन, रावणवर्णन, वस्त्रनाम, वात्रिनाम, उष्णकाष्ठवर्णन, वस्त्रालंकारवर्णन । ये वर्णन संवत् १४७८में रचित माणिक्यचंद्रसूरि कृत 'पृथ्वीचंद्रचरित' अपर नाम वाग्विलासका स्मरण दिलाते हैं। ये सभी वर्गन सूरचन्दजीके स्वयं रचित नहीं प्रतीत होते। क्योंकि हमें ऐसे वर्णनोंके कोशरूप पांच स्वतंत्र ग्रन्थ उपलब्ध हुए हैं जिनमें आये हुए वर्णन इस ग्रन्थमें सामान्य हेरफेरके साथ उद्धृत हैं । कई वर्णन उनके रचित अवश्य होंगे। ग्रन्थ रचनाकाल-प्रतिके अपूर्ण प्राप्त होनेसे ग्रन्थका रचनाकाल ठीक नहीं बतलाया जा सकता फिर भी इस ग्रन्थमें प्रसंगवश विशेष जाननेके लिए स्व रचित जैन तत्त्वसारको देखनेका उल्लेख किया है, जैन तत्त्वसारकी रचना संवत् १६७९ आश्विन शुक्ला १५ बुधवार को अमरसरमें हुई है। अतः इस प्रन्थका रचना समय इसके पीछेका ही सिद्ध होता है । प्रत्येक पदों के विवेचन की समाप्ति-पुष्पिका दी है, जिसमें कहीं कहीं अपने गुरुभ्राता पावल्लभ द्वारा इस ग्रन्थ रचनामें साहाय्य मिलनेका लिखा है। इन्हीं पद्मवल्लभजीकी सहायताका उल्लेख जैनतत्त्वसारमें भी किया है । जैन तत्त्वसार ४१०० श्लोकोंकी टीकाके साथ हालहीमें पुनः प्रकाशित हुआ है। प्रति परिचय-प्राप्त प्रति समकालीन और शुद्ध है। हांसियेमें अनेक स्थानों पर शब्दोंके अर्थ और टिप्पण भी दिये हैं प्राप्त पत्रोंकी संख्या ९८ और प्रति पृष्ठमें पंक्ति और प्रति पंक्तिमें अक्षर हैं। संयोगकी बात है, कवि सूरचंदकी तीनों महत्वपूर्ण रचनाओंकी एक एक प्रति ही और वह भी अपूर्ण प्राप्त है । अतः पंचतीर्थी श्लेषालंकार स्तव, स्थूलिभद्र गुणमाला चरित (१५ सर्गतक प्राप्त ) और प्रस्तुत ग्रन्थकी भी पूर्ण प्रतियों का पता लगाना परमावश्यक है । कविके प्राप्त ग्रन्थोंका रचना समय सं. १६५९ से १६९४ तक है। इन ३५ वर्षोंमें अवश्य ही और बहुतसे ग्रन्थ रचे होंगे जो अन्वेषगीय हैं। For Private And Personal Use Only

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