Book Title: Jain_Satyaprakash 1947 09
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir અંક ૧૨ 1 - પારસી ભાષાકા શાન્તિનાથ-અષ્ટક [ ૭ ३. कोश और ४. अनुवाद । इन सबसे शान्तिनाथ-अष्टक प्राचीनतम प्रतीत होता है। अतः इसे नागरी अक्षरोंमे प्रथम बार यहां प्रकाशित किया जाता है। ___ यह अष्टक स्तोत्रादिकी एक संग्रह-प्रतिमें पत्र १४२-४३ पर लिखा हुआ है। यह प्रति दोंनो ओरसे अघूरी है अतः इसका लिपि-काल ज्ञात नहीं हो सका । तथापि अक्षरोंकी आकृतिसे यह प्रति तीन-चार सौ बरस तक पुरानी होगी। अष्टक वाले पत्रे हमको बीकानेर निवासी श्रीयुत अगरचंद नाहटाके सौजन्यसे देखनेको मिले। प्रतिमें अष्टकके रचयिताका नाम नहीं दिया। लेकिन हमारा दृढ अनुमान है कि यह जिनप्रभसूरिकी रचना है, क्योंकि (१) उन्होंने प्रतिज्ञा की थी कि प्रति दिन एक नवीन स्तोत्र रच कर आहार किया करेंगे। (२) उनका फारसी भाषामें रचा हुआ ऋषभनाथ स्तव प्रकाशित हो चुका है जिसकी भाषा और शैलो शान्तिनाथ-अष्टकसे मिलती जुलती है। __(३) उन्होंने दिल्लीके सुल्तान मुहम्मद तग़लक के दर्बारमें काफ़ी आदर मान पाया। अतः उन्होंने शाही दर्बारमें आने जाने के कारण या इससे भी पहले फारसी सीख ली होगी। (४) इस स्तोत्रके अंतिम पद्यमें इसका रचना-काल अरबी शब्दोंमें मुहम्मदी सन् ६८५ दिया है जो वि० सं० १३५२ है। उस वर्ष जिनप्रभसूरि दिल्लीमें विराजमान थे। ___ अष्टककी भाषा वर्तमान साहित्यिक फारसीसे उच्चारण तथा व्याकरणमें काफी भिन्न है। किसी अंश तक यह बात देवनागरी लिपिमें लिखे जाने तथा भारतीय छंदोंमें रचे जाने के कारण स्वाभाविक है। तो भी इस पर फारसीकी किसी प्रान्तीय बोलीका तथा प्राकृत या अपभ्रंशका प्रभाव स्पष्ट है। जो कुछ भी हो, यह अष्टक भारतमें प्रचलित तत्कालीन फारसी के स्वरूप पर काफी प्रकाश डालता है। भाषाविज्ञानियोंको दृष्टिमें यह अष्टक बड़ा महत्त्वपूर्ण है। एक जैन भिक्षुने म्लेच्छ कहलाने वाली फारसी भाषा द्वारा अपने परम इष्टदेव श्री तीर्थंकर भगवान् की स्तुति करनेसे रत्ती भर संकोच नहीं किया। इससे जैनाचार्यों की विशाल-हृदयताका परिचय मिलता है। इस स्तोत्रके नौ पद्य हैं। अंतिम पद्यमें रचना-काल दिया है। वास्तवमें स्तोत्ररूपी अष्टक आठ पोंमें ही समाप्त हो जाता है। मुल पाठ अजि कुह काफु जुनूवि शहरि हथिणापुर- गोवनि पातसाहि विससेणु षिम्मिति भो राया जेवनि ।११ कौम्यो१२ ऐरा देवि तविहि सीतारा माना। For Private And Personal Use Only

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