Book Title: Jain_Satyaprakash 1947 09
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 26
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir mm જૈન સત્ય પ્રકાશ [वर्ष १२ जब नौ मास और सात दिन व्यतीत हो गये और दो घडो रात निकल गई, तब शयनागारमें शुभ समय और शुभ मुहुर्तमें उसके भाग्यवान पुत्रका जन्म हुआ जो मानो चन्द्रमाके समान था।.. ४. उस नगर में आनंद उत्सव मनाया जाने लगा। स्थान २ पर संगीत होता था, और नये २ प्रकार के ढोल बज रहे थे । इस उत्सव पर राजा विश्वसेन ने मुखिया, चौधरी सामंत और हर जाति के सब लोगों को वस्त्र दान दिये। बारह वें दिन उस (बालक) का नाम भगवान् शान्तिनाथ महाराज रखा गया। बडा हो कर वह सिंहासन पर बैठा और दुनियां में देश पर राज्य करने लगा। ५. सोलह हजार देवताओंने मिलकर (उसके) स्वर्ण और भूषण सहित चौदह रत्न और नौ निधियों की वृद्धि की। उसके अन्तःपुर में चौसठ हजार सुन्दर रानियां थीं। उसके चौरासी लाख हाथी, घोडे और खच्चर थे। उसके ग्रामोंका विस्तार छयानवे करोड था। उतना परिमाण पैदलोंका था। बत्तीस हजार देश और उतने ही राजा उसके आधीन थे। ६. एक दिन उसने जाना कि संसार में कोई पदार्थ (स्थिर) नहीं है। जो कुछ इस घडी दिखाई देता है, वह दूसरी घडी नहीं रहता। उसने सुनहरी, न कि रूपहली, दिनारों का दान देना प्रारंभ किया। एक करोड आठ लाख, इतमें वह प्रतिदिन दे डालता था। एक वर्ष में तीन सौ अठासी करोड और अस्सी लाख (दीनार दान किये। इतना मुल्क और इतना धन छोड़ कर वह साधु हो गया। ७. आकाश के सात भुवन और पृथ्वी के सात खंड; जो कुछ भी दुनिया में प्रकाशमान था, वह उसे दीपक की भांति देखता था। वह रहस्य की बातों को जानता था और कठनाइयों को हल कर देता था। वह पथ-भ्रष्टों को पथ दिखलानेवाला था और दुराचारको नष्ट करनेवाला था। ...आयु के अंतिम भाग में इस प्रकारकी तपस्या और पुण्य-कार्य में बरसों बीत गये। जब आयुकर्म क्षय हुआ तो वह सिद्ध होकर निर्वाण को पहुंचा। ८. हे स्वामी शान्तिनाथ ! जो कोई तेरा नाम लेता है, उसके (घर) सब वस्तुएं हो जाती हैं। उसे फुल्ल इब्ब (१) कहने की जरूरत नहीं पड़ती। वह नरक आदि के पंजे से बचा रहता है और उसके घर मान और धनदौलत (स्वयं) पहुंचते हैं। मेरे सब पाप क्षमा करो। मुझ पर दया और कृपा करो। संसार के कष्टों से मेरी रक्षा करो और आप स्वयं मुझे स्वर्ग में ले चलो। . . ९ मुहम्मदी तारीख के अनुसार सन् ६९५ (हिजरी) में फितरी ईदी के छठे दिन मैंने श्रद्धा-धन की यह टीका की है। For Private And Personal Use Only

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