Book Title: Jain_Satyaprakash 1947 09
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 25
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir N NW M અંક ૧૨] પારસી ભાષાકા શાતિનાથ-અષ્ટક यक कुरोडि लख हष्टि दिहइ हर रोजी २ कदरे । से सदु व हष्टि हष्टा कुरोडि, हष्टा लख यकि सालि दादु । ई चुनी मुलुकि दौलति चिनी, तरकि गिरिफ्ला सेष सुदु ॥६॥ हफ्लु तवक आसमा जमी हर हफ्लु मुदौवरि । वीनइ हमचु चरागु हचि दरि दुनी मुनौवरि । मे दानै दरि गैवि हमा मुस्किल हल विकुनै । रहनुमाइ गुमरहा तवह वजगारी४४ विजनइ । ई चुनी सक्लित ५ आषरि उमरि, दरि सवावि सालहा सुदु । अल उमरि चू कि पि तमामि सुदु, भिष्टि रफ्लु एमिना सुदु ॥७॥ नामि तु वामदि संतिनाह हरि कसे कि गोयदु । हमा चीजि उर सवइ फुल्लुइव्वुनो४७ वुगोयदु । अजि सेवस्ता४८ गहिल कुंउ पंज्याउ सलामति । खाना विरसादारि पि हम इज्जति जरि दौलति । मिंजुम्लै गुनहा वकसिम, वुकुं रहमलुरुफु° ई कदरि । अजि अदावि दुनीए निगहदारि, मरा भिष्टि वरि पो वुवरि ॥८॥ अजि तेरीष मुहम्मद सन खमस व तिसईन सित्त मिय। फितिरीदी५१ शशिमिसरा कडदामु५२ दौलति वामी ॥९॥ ॥ पारसी भाषा चित्रकेण श्री शांतिनाथाष्टकं ॥९॥ अनुवाद १. कहते हैं कि काफ पर्वतके दक्षिणमें हस्तिनापुर नगर था। वहां विश्वसेन राजा था। दूसरे राजा उसकी सेवा करना चाहते थे। उसकी रानी अचिरादेवी स्वभावमें सीताके समान थी। वह अपने एक पतिको छोड़ दूसरे सब पुरुषोंको पिता समशती थी। बह अपने विशाल चित्र-भवनमें एक दिन आनंद पूर्वक सोई हुई थी कि रात्रिके अंतिम भागमें उसको चौदह स्वप्न हुए । उसने इन सबको देखा २. सुंदर और श्वेत बैल, हाथी, समुद्र, झंडा, कमलोंसे भरा हुआ सरोबर,---, सूर्य, चन्द्र, पूर्णकलश, मोहरों का ढेर, देवताओंका विमान, सिंह और जलती हुई आग । प्रात:काल होने पर वह जागी और अपने पतिके पास आकर बोली, “मैंने रातको स्वप्न के अंदर (ये चीजें) देखी है,हे स्वामिन् ! कहो क्या होगा?" ३. राजा विश्वसेनने अचिरादेवीको कहा, “तेरे ऐसा पुत्र होगा जिसको मुल्क और दुनिया ढुंडेगी"। जब उसने इतनी बडी प्रसन्नताको बात सुनी तो उसका मनोरथ पूरा हुआ। वह गर्भको अच्छी तरह पालने लगी ताकि मेरे उत्तम स्वभाव वाला (पुत्र) पैदा हो । For Private And Personal Use Only

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