Book Title: Jain_Satyaprakash 1945 11
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
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५२) શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
[वर्ष १ ६. तेरहपन्थी साधुओंके अतिरिक्त संसारके सभी प्राणी कुपात्र हैं, इसलिये तेरहपन्थि साधुओंके अतिरिक्त किसीको दान देना-उनके जीनेको चाह करना पाप है।
७. पुत्र अपने मातापिताकी और स्त्री अपने पतिदेवकी सेवा करे तो उसमें भी तेरहपन्थी एकान्त पाप को कहते हैं और माता-पिताको भोजन देना भी तेरहपन्थियोंके मन्तव्यानुसार एकान्त पाप है।
प्रिय पाठकगण ! मैंने जो कुछ ऊपर लिखा है, वह अपनी तरफसे नहीं किन्तु तेरहपन्थ मतके आद्य प्रवर्तक और उनके परम्परा अनुगामियोंके सैद्धान्तिक पुस्तकोसे हीउद्धृत किया है । तेरहपन्थियोंके आय आचार्य भिक्खुजी स्वामी हुये हैं। उन्होंने यथाबुद्धि बलोदयसे " अनुकम्पा-ढाल " नामक पुस्तक लिखी है, उसके कुछ उद्धरण नीचे दिये जा रहे है, जैसे
"कोई लायसूं बलताने काढ बचायो, वले कूवे पडताने बचाया, वले तालाबमें डूबताने वाईरे काढे, वले ऊंवाथी पडताने झाल लियो तायो,
ओ उपकार संसार तणो छ, संसार तणो उपकार करे छे, तिणरे निश्चय संसार वधे ते जाण ॥" ढाल ११, पृ. ५२ ।
भावार्थ-अग्निमें जलते हुये जीवोंको कोई बाहर निकालकर बचावे, कूएमें गिरे हुयेको बचावे, तालाबमें डूबते हुयेको बाहर निकाल कर बचावे, अथवा ऊपरसे गिरते हुयेको बीचमें ही झेलकर बचावे, तो ये सबके सब संसारी उपकार हैं, संसारका उपकार करनेसे निश्चय करके संसारकी वृद्धि होती है अर्थात् ऐसे उपकार करनेवालोंको तेरहपन्थी पापी कहते हैं। "गृहस्थरे लागी लायो घर बारे निकलियो न जावे ।। बलता जीव बिल बिल बोले साधु जाय किवाड़ न खोले” ॥ ढाल २, पृ. ५ ।
भावार्थ:-किसी गृहस्थके घरमें आग लग गई हो, यदि घरके लोग बाहर नहीं निकल सकते हों, भीतरके भीतर ही बिलबिला रहे हों तो भी साधु वहां जाकर किबाड़ नहीं खोले । “लाय लगी जो गृहस्थ देखे तो तुरत बुझाव छ कायाने जीव मारी। यह सावध कर्त्तव्य लोक करे छे तिनमें तो धर्म कहे सांगधारी" ढाल २, पृ.६।
भावार्थ:-कहीं आग लगी देखकर गृहस्थ लोग उसे शीघ्र बुझाते हैं और छह कायके जीवोंका घात करते हैं और सांगधारी ( वेशधारी साधु ) उसमें भी धर्मको मानते हैं। "कोई मात पितारी सेवा करे दिनरात, वले मनमाना भोजन त्यांने खवाय । वले कांवड़ कांधे लिया फिरे त्यारी, वले बेहू टंकोरा स्नान करावे ताई ॥
ढाल ११ पृ. ५२॥ - भावार्थः-कोई दिनरात माता-पिताको सेवा करे, उन्हें मनमानी वस्तु खिलावें, कावड़में बिठाकर उनको कन्धे पर लिये फिरे, दोनों समय उन्हें स्नान करावे तो यह संसार बढानेवाला उपकार है, अर्थात् यह भी तेरहपन्थियोंके मतमें पाप है। और
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