Book Title: Jain_Satyaprakash 1945 11
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [५] ५४२] નિર્દાન્ત હિડિમ का परम कर्तव्य है, इस बातका एसियासे यूरप तक विश्वके सभी सभ्य लोक निःशंक होकर स्वीकार करते हैं। मगर लजाके साथ विवश होकर यह लिखना पडता है कि धर्मके नाम पर एक ऐसा भी सम्प्रदाय चल रहा है जो पूर्वोक्त दया-दानादि धार्मिक बातों में पापको बतलाता है । इस सम्प्रदायका नाम " जैन श्वेताम्बर तेरहपन्थ " है। हमारी समझसे यदि इसका नाम “ विचित्र पन्थ " रखा जाता तो बहुत अच्छा (अन्वर्थक) नाम होता, क्योंकि दुनिया जिसे पुण्य मानती है, उसे ये तेरहपन्थी पाप मानते हैं। अधिक क्या ? दया, दान, परोपकार, लोकसेवा आदि कल्याणकार्यको विश्वके धार्मिक सिद्धान्तोंमें एवं उच्चतम मानव जीवन में एकतम लक्ष्य या परम कर्त्तव्य माना जाता है, किन्तु उन सभी धार्मिक सिद्धान्तोंको तेरहपन्थी अधोगतिका कारण मानते हैं। बस,योंसे इनकी विदूरदर्शी विवेकदृष्टि(!)का श्रीगणेश होता है, जिससे धार्मिक सिद्धान्तोंके नामपर अधार्मिक शस्त्रका आविष्कार होता है। 'जैनधर्म' दया और जीवरक्षाके विषयमें सबसे आगे बढ़ा हुआ है,किन्तु खेदको बात है कि-उसी जैनधर्मकी आडमें छिपकर ये तेरहपन्थी उसो (धर्ममूल दयाके सर्वतः पोषक ) जैनधर्मके मुख्यतम सिद्धान्तका समूलोछेदन करनेपर कटिबद्ध हैं। अतः प्रत्येक जैन और जैनेतर धर्मबन्धुओंको चाहिये कि वे ऐसे विश्वव्यापी धर्मों के विरुद्ध के प्रचारोंका तन, मन और धनसे प्रबल विरोध करें। इन तेरहपन्थियोंकी मतिविभ्रमता सार्वदेशिक धर्मसे कितना सम्बन्ध रखती है, यह जैन जनताको जताना आवश्यक है, अतः ‘सूची-कटाह' न्यायसे दया-दानके विषयमें तेरहपन्थियोंके माने हुये कुछ सिद्धान्त नीचे दिये जा रहे हैं, जैसे: १. गौओंसे भरे हुये बाड़े (गो-गृह )में आग लग जाय और यदि कोई दयालु पुरुष उस बाड़े (गो-गृह )के किवाड़को खोल कर उन पशुओंको रक्षा करे तो उसको 'एकान्त पाप' लगता है। २. बोझ (भार) से भरी हुई गाड़ी आ रही है, और उस मार्गमें बालक सो रहा है, यदि कोई दयावान् पुरुष उस बालकको उठाकर उसके प्राणोंकी रक्षा कर देता है तो तेरहपन्थी उसे 'एकान्त पापी ' कहते हैं। . ३. यदि किसी ऊंचे मकानसे बालक गिर रहा है, और कोई दयावीर बीचमें ही उसके प्राणोंको बचा लेता है, तो तेरहपन्थियोंके सिद्धान्तोसे वह एकान्त पापी है । ... ४. किसी सच्चे तपस्वी साधुके गले में फांसी देकर कोई हिंसक उसको मारना चाहता है, यदि उस तपस्वीके गलेसे फांसी हटाकर कोई उसकी जानको बचाता है तो तेरहपन्थी - उसको एकान्त पापी कहते हैं । ... ५. असावधानीसे पैरके तले (नीचे) आकर यदि कोई जीव मर रहा है, और उस जीवको यदि कोई बचा दे तो तेरहपन्थी उसे एकान्त पापी कहते हैं। For Private And Personal Use Only

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